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हमारी दुनिया_दारी, दुकानदारी!

हमारी  दुनिया, हमारे लोग हमारा घर हमारा परिवार हमारे साथी हमारा समुदाय हमारी दुनिया मेरा घर   तुम्हारा घर मेरे लोग तुम्हारे लोग मेरा परिवार तुम्हारा परिवार मेरे साथी तुम्हारे साथी मेरे बच्चे तुम्हारे बच्चे मेरी औरतें तुम्हारी औरतें मेरी इज्जत तुम्हारी इज्जत मेरा समुदाय तुम्हारा समुदाय मेरी ताकत तुम्हारी कमजोरी तुम्हारी ताकत मेरी कमजोरी मेरी बंदूक तुम्हारी बंदूक मेरी लड़ाई मेरी जीत तुम्हारी हार मेरी जीत   तुम्हारी जीत मेरी हार   तुम्हारा नुकसान मेरा फायदा मेरा नुकसान तुम्हारा फायदा तुम्हारी बर्बादी, मेरी ...? मेरी जीत? मेरी जीत मेरी हार! बिखरा समुदाय टूटे घर भूखे पेट अनाथ बच्चे कैसा परिवार ? मैं बर्बाद तुम बर्बाद कौन आबाद ? मेरी लड़ाई तुम्हारी लड़ाई किसकी कमाई ? मेरा पैसा तुम्हारा पैसा किसके पास ? मेरी भूख तुम्हारी भूख मेरे दर्द तुम्हारे दर्द मैं चुप तुम खामोश खामोशी में हम हमारे सच हमारी ज़िंदगी हमारा परिवार हमारे बच्चे   हमारी दुनिया !

कुछ होना है!

"कुछ होना है" खेल है, दुनिया का! आप खिलौना हैं! सच तमाम है,  झूठ बोलते, उसके सामने आप बौना हैं! आप कम है, क्योंकि कोई ज्यादा है, खेल घिनौना है! कंधे किसी के सीढ़ी किसी को कामयाबी भी बोझ ढोना है! तराज़ू किस के, नाप किसका बाज़ार बड़ा है, आप नमूना हैं! रंग फीका है, ऊंचाई टीका है, वज़न ज्यादा कम मुश्किल होना है! "मैं" पहचान, पीड़ा, अभिमान, बड़ी तस्वीर, आप एक कोना हैं!

बहुरूपी सच!

अंधे आसमाँ 5

खेल - अब देखिए! मेरा अपने से बेजोड़ मेल , अपनी हिम्मत से दो - दो हाथ , डर के साथ , डर से बात कौन बड़ा? करने के डर और न करने का , आमने सामने खड़े हैं! ज़िंदगी के सारे सच टूट कर , पैरों तले पड़े हैं!! हारा कौन? जीता किससे? होंगे मशहूर मेरे किस्से!! क्या मुश्किल है? अपनेआप से हारना? या अपनेआप को मारना? फर्क है कुछ? कहीं? किसको? मैं जी रहा हूँ! किसके लिए? कोई कदम मेरे साथ? कोई पीठ पे हाथ? किसी की नज़र मुझ पर? या मैं बेनज़र हूँ? बेअसर? तमाम , हाथ , पैर , नाक , कान , मुँह की भीड़ में एक , अनेक? रोज़ का किस्सा? भीड़ का हिस्सा? मुझे दिखता है ….! मैं अब कहाँ हूँ! आप भी अब देखिए!

अंधे आसमाँ 4

मैं मैं हूँ चीख रहा हूँ पर शोर इतना जो सुनाई नहीं देता! रोशनी इतनी कुछ दिखाई नहीं देता इसमें “मैं” कहाँ हूँ? अपनी नज़र में डूबता , तैरता मेरा नज़रिया किसी किनारे टिक नहीं पाता और किनारे हैं कहां? सब डूबे हुए खुद में “ खुदी” में राग अलापते , “ मैं … मैं … मैं” बस मैं नहीं ……..   इसमें कहीं!!

टेबल लैंड!

सुबह तमाम, पंचगनी आसान, मेज़ जमीं, (table land) मेज़बान बनी, सुबह या शाम, समेट सकते हैं पूरी, आगाज़ भी अंजाम भी, एक ही जगह, न कोशिश, न वज़ह, फ़कत स्थिरता, समझिए, कुछ नहीं, आप! मूर्त हो रहिए, और चारों ओर सब बदलता देखिए इसमें "मैं" कहाँ? गर ये सवाल है? तो अफ़सोस! आप अहं हैं! आपको अपना ख़ासा वहम है! जमीन पर आइए! आप वहीं हैं, आप वही हैं!!

मैं और मेरा सरमाया!

मेरा "मैं" होना, और "मैं" मेरा होना, जो मैं हूँ, पहले से, होते हुए, एक सफर है, सीखे को भुलाने की, जो 'यही होता है' समझने की, उसके आगे जाने की, "जाने दो", जाने दूं? कभी ये सवाल है, सवाल हैं? कभी एहसास, हर लम्हा मैं खुद को सुनती हूँ, गुनती हूँ, बुनती हूँ, कभी मैं हूँ, कभी मैं नहीं, फिर भी, मैं ही हूँ मेरे होने में, पाने में कभी खोने में, पूरी एक दुनिया नज़र आती है, जब मैं,खुद में गहरे जाती हूँ, क्या सच, क्या माया, जो सोचा कहाँ से पाया, फंतासी या सपना आया? क्या है मेरा सरमाया!? किसे ख़बर!? (ये दोस्त निष्ठा की इंग्लिश अभिव्यक्ति का ट्रांस्पोइट्रेशन है, तस्वीरें भी उसी की नज़र और कैमरे से हैं)

अपने से गुमशुदा!

अपने ही रास्ते अब तय नहीं कर पाते, अपने ही सपनों में अब हम नहीं आते, अजनबी हो रहे हैं खुद से हर रोज़, जानते हैं अच्छे से पर मिलने नहीं जाते! कैसे कह दें के तमाम अरमान हैं, रास्ते अलग हैं दुसरे सामान हैं,  मर्ज़ी की मज़बूरी के सब काम हैं, शिक़ायत है के बहुत आराम है! खुद से ही कई शिकायत हैं, पर वो हम कर नहीं पाते! कई शौक हैं मुक्कमल हमारे ओ शोक जो किनारे नहीं पाते!! खुद के ही सामने नहीं आते, ज़िक्र करते हैं सुन नहीं पाते! दूर नहीं हैं अपने उसूलों से, पर उतने नज़दीक नहीं जाते!! धुरी भी हम, चक्का भी हम, हम ही सवार हैं! दूरियां तय नहीं होती, हम ही जिम्मेदार हैं!! ख़ुद से बग़ावत  हम कर नहीं पाते, संभले हुए हैं इतने, बहकने नहीं पाते!

आंनद क्या और कब?

                  मैं जो जानता हूँ, मैं कर सकता हूँ, खूबसूरती से उसे दरकिनार करूं मैं जो सोचता हूँ मेरा होगा वो उम्मीद कभी पूरी न हो मैं जो आस लगाये बैठा हूँ दूसरे सराहेगें, स्वीकारेंगे काश वो नौबत न आये मैं जो लड़ता हूँ पूरे गूरूर और मुंहबाँइं आशंकाओं के रहते वो मुझे हारना ही चाहिये जो भी पकाउँ “मैं" और ‘तुम’ चखो ‘मैं’ बिगाड़ ही दूंगा कोई आकर्षण खूबसूरती कोई देने में है जहाँ जरुरत है सहज जो भी सामने. है कोशिश जो बस मौज़ूद जो भी समझा है बाहर दूर बारीख नज़र में है वही जो है जो बनाता है तुम्हें, कोई और दिल की गर्मी के आगोश में पिघल जाये आमीन! (करीबी आनंद चाबुकस्वर की कविता का इंग्लिश से अनुवाद)

ज़रा हम ज़रा कम!

बहुत चलाली,दुनिया, तूने! चलो आज थोड़े हम हो जाएँ! अपने लिए ही तो है, क्या फ़िक्र जो थोड़े कम हो जाएँ! घूम रहे हैं या खुद को ढूंढ रहे हैं, अपने ही कानों में बहुत गूंज रहे हैं! पास आ गए अपने के दूर हो गए? आईने कुछ ऐसे चकनाचूर हो गए! नज़र में हैं खुद की और खुद नज़र आते हैं, अक्सर हम बड़े खुदगर्ज़ नज़र आते हैं! यूँ अक्सर हम, हम ही होते हैं, कभी ज्यादा तो कभी कम होते हैं! खुद के खारिज़ हैं अक्सर, क्या शिकवा करें ज़माने से! पुछ रहे हैं अब क्या होगा, अपने ही अफ़साने से! अपने ही शौक़ीन न हो जाएँ, आईने कहीं मेरे यकीं न हो जाएँ! लगे है रोज "Like" गिनने में, ड़र हैं कहीं कमी न हो जाये!

ज़रा

ज़रा सा उनका मुस्कराना है ज़रा सा हमको पास जाना है ज़रा सी भूल हमसे हो ज़रा सा उनको भूल जाना है! ज़रा सी सख्तियाँ उनकी ज़रा सी नाज़ुक मिज़ाजी, ज़रा से बेशरमियाँ मेरी, ज़रा सी हाज़िर-जवाबी ज़रा से रास्ते दिल के ज़रा सा साथ में चल के ज़रा सी उम्मीदें उनकी ज़रा सी मेरी जिद्दें हैं,  ज़रा सी आवारगी में हम, ज़रा से उनके नखरे हैं, ज़रा है साथ ये हरदम,  ज़रा से फ़िर भी बिखरे है ज़रा से अजनबी हम हैं, ज़रा सो वो हैं पहचाने ज़रा सा दूर से देखें ज़रा करीब कब आएं! ज़रा से हम उनके हैं, जरा से वो हमारे हैं, ज़रा सा बह रहे हैं वो ज़रा सा हम किनारे हैं  ज़रा से ज़ख्म उनके भी ज़रा से दर्द हमारे हैं ज़रा सा इश्क ये ऐसा ज़रा से हम बेचारे हैं ज़रा सा मौसम बेइमान ज़रा सी सफ़र कि थकान ज़रा सा हाथ कंधों पे ज़रा सा काम यूँ आसान