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वही पुराना नया साल!

क्यों पूछते हैं के; ये साल कैसा है? जो हम कहें; ये सवाल कैसा है? इलाज़ नहीं मर्ज़ का और हाल कैसा है? दफना दिया ज़हन में वो सवाल कैसा है? खुशी किस बात की, बवाल कैसा है? आसमान भेदती तरक्की का अंजाम कैसा है? ख़बर बन कर आता इश्तहार कैसा है? उम्मीद कैसी है यकीन कैसा है? ख़ुदा को दफन करके राम कैसा है? मज़ाक बन गए हैं इलेक्शन सारे, सच, क्या मन की बात जैसा है? बेशर्म है नहीं मरता, इंसान कैसा है! गला दबोच के रखा है साल भर से, कोई सुनेगा वो पेलेस्टाइन कैसा है? क्या बदला है जो ये साल बदला है? जरा सोचिए ये सवाल कैसा है?

2016

सच्चाई नहीं बदली और साल बदल गया, चन्द लम्हों को रात का माहौल बदल गया, बदला ऐसा के शोर बड़ गया, शायद दाढियों में तिनके का जोर है, और हम से ये उम्मीद कि ज़रा जोर मुस्करायें, तहज़ीबें कवायत है कदम मिलायें, अच्छे दिन आयेंगे, एइसे गाने गायें, चौंड़ा सीना बन जायें, बकरी को गाय बनायें, मज़हब के नाम सब गुड़-गोबर बन जायें, सारी बहस ख़त्म हो जाएँ, लाजमी है सब एक राय हो जाएँ, मंदिर वहीँ बनाएं अलग राय रखने वालों को बजरंगी बन जाएँ या तो चुप रहें या मुँह काला करवाएं, ज़रा भी शराफ़त बची है, तो घर वापस आयें, छोड़िये ये बातें पुरानी हैं, तारीख बदल रही है कई तरीकों से, दीवारों पर, किताबों में, शायद सब बदल जाए, भेड़ों की संपन्नता देख, आप भी भेड़ बन जायें कल सुबह आप उठें, तो खबर बतायें, सब सकुशल, सब बराबर, न किसी की जात, न ऊंच-नीच, न गरीब-अमीर न मजदुर न मालिक मुबारक हो, हमें भी जरूर बताएं, जब आपका साल मुबारक हो जाये!

क्या है कि!

11,12,13,14,15, 16, 17,18,19,20, समझ नहीं आता, ये न्यू ईयर क्या चीज़! एक के साथ एक फ़्री, नया सेल आया है! तमाम इश्तेहार, पार्टीयाँ, बॉटलों‌ कि बलि,  किस सच को छुपाने इतना शोर है चलो फ़िर से कुछ भेड़चाल करें, सवालों को जला गर्म माहौल करें! लकीर के फ़कीर आज जश्न-मुबारक है, सुना है आज फ़िर कुछ नया दोहराएंगे !  नया साल आने वाला है, मोटी चमड़ी को, एक और खाल आने वाला है?? बचपन से सुना है हिन्दुस्तानी भेड़चाल, ज़माना अब दिखा रहा है हर हाल! बात पुरानी है, सो तो है! आपकी कौन सी नयी जवानी है? साल बदल रहा है, सो तो है! अब के कौन सी नयी कहानी है? चलिये कुछ नयी बात करें, नया साल, कहीं सुना है पहले! चलो चलो नया साल बनाते हैं, बाल की कोई खाल बनाते हैं! चलो चलो पुराना सब भूल जाते हैं, आसान काम है, नया साल बनाते हैं!

भेड़चाल क्या सवाल?

चलो फ़िर एक साल हो गया पेड़ से टूटा जैसे कोई छाल किसी के हाथों इस्तेमाल कौन सी बड़ी बात है जैसे चल पड़ी कोई अटकी हुई रात है , या मुँह मांगी सौगात है चल दिये उठ कर जैसे कुछ खत्म हो गया जख्म किसका था फ़क़्त एक निशां हो गया तमाम उम्मीदें , चंद हालात , और बिखरे पल चलने को तैयार एक और झोला हो गया ! लम्हे अधुरे रह गये उनका क्या कीजे काबिल कश्तियों को तिनका का दीजे , बाकी सब ठीक है यारब मेरे , मनमर्ज़ी कायनात को पैजामा का कीजे ! दिन बदलने से तारीख़ नहीं बदलती , करवट लेने से तासीर नही बदलती , मंशा , ज़ज्बा , और तमाम कोशिशें गिनती से कोई तामीर नहीं बदलती ! भेड़चाल है, फ़िर क्यों सवाल है, मुबारक हो आपको नया साल है!