चलो आज ज़रा इन्साँ हो जायें, ज़रा दिल को नफ़रत से बचायें! बस हुआ दो और दो का चार करना, किसी के खून को हिसाब न बनायें, नहीं हो सकती मोहब्बत तुमसे कोई बात नहीं, गुज़ारिश इतनी कि ज़रा आईने में देख मुस्करायें खून और अश्कों में फ़रक कब खत्म हुआ, नादानों को नादानी के मायने कौन समझाये? ना कोई खुश होगा न सुकूँमंद ये यकीं है, हाथ क्या आया ज़रा कोई हमको समझाये! यही आखिरी रास्ता है कैसे यकीं आया? गुस्ताखी माफ़ हो प्लीज़ ज़रा गौर फ़रमायें आज नफ़रत-गुस्सा कितना आसाँ हुआ, हो सके तो आज उस बाज़ार न जायें दिल पे हाथ रखें और महसूस करें, आज गरज है उम्मीदों की, न गवायें please please please.....
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।