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ये दास्तां! ब्लॉइंग इन द विंड!

कितने रास्तों पर हम चलें जब कहेंगे ,  हां ! हम हैं इंसान कितनी सरहदों का सामना हम करें जब कहेंगे ,  बस ! अब और नहीं कितनी जंग लड़ें और मरें , जब कहेंगे ,  नहीं ! एक भी और नहीं ! ये दास्तां हवा में है बयां , हवा में है ये दास्तां बयां , कौन से सच सर चढ़े हैं सदीओं से आखिर कब जमीं से मिलेंगे ? कब तक जुल्म में लाखों घुटते रहेंगे  कब कहेंगे हम हैं आज़ाद ? किस किस से ओ कब तक हम मुंह फेरते रहेंगे ,  जैसे कुछ हुआ ही नहीं ? ये दास्तां हवा में है बयां ,  हवा में है ये दास्तां बयां , कितनी बार कोई नज़र उठाते रहें के आ जाए नज़र आसमाँ कितने आंसूं बरसे जब कभी कानों पर ,  जूं रेंग जाए कितनी मौतें और खबरों के बाद ,  " बस ! बहुत हुआ " कह पाएं ? ये दास्तां हवा में है बयां ,  हवा में है ये दास्तां बयां! कौन से आईनों में हम देखें के तस्वीर पुरी जान पाएं? कितने बचपन बच्चों के मजदूरी से ...

बातों बातों में.....

कहीं कुछ रोकता है क्यों.... खुला दिलो-दिमाग हो तो दरवाज़े दीवार नहीं होते, आपस की बात है, वरना ये आसार नहीं होते  देखने और होने के बीच के फ़ांसले .... नज़र आँखों में नहीं यकीन में होती है,  एक हंसी से भी जिंदगी हसीन होती है! सब एक नाव में सवार हैं . . . आपको हमारे माथे की पेशानियां नहीं दिखती, जमीं रहने दो, वरना लब्जों में जान नहीं दिखती सफ़र आपके भी हैं और अपने भी.... गुजरते हुए लम्हे हैं गुमराह मत हो,  मुश्किलें मील का पत्थर हों, सफ़र न हों! तक्दीर फ़क्त एक रास्ता है,  मंज़िल नहीं होती, मुश्किल, मुसाफ़िर न हो, तो वो मुश्किल नहीं होती! मुसाफ़िर होना फ़कीरी काम है, सफ़र में यही बस एक नाम है!.... हमारा दुनिया में होना ही एक सफ़र होता है,  कौन सी राह से गुज़रेंगे, ये अपनी नज़र होता है! मुसाफ़िर रहना हो तो फ़कीरी अंदाज़ हों, कटोरा हम देंगे मुबारक आपकी आवाज़ हो! हाथ फ़ैला दिये तो कटोरा तैयार है,  दिखती सामने होगी, पर जहन में है, वो जो दीवार है, सच करवट बदलते हैं.... दुविधा भी सुविधा का दुसरा नाम है, वो बहकना क्या जो हाथों मे जाम है? मोड़...