एक मौका जुड़ने का उन सरहदों पर जहाँ सेना नहीं , पर सीमायें बहुत हैं , मानकों की , मान्यताओं की सभ्यता की कश्तियाँ हैं , और मांझी भी , सब के सब तैयार , तत्पर और लाचार अपनी तस्वीरों के , तमाम जंजीरों के कुछ जो नज़र ही नहीं आती फ़िर भी न किसी के हाथ खड़े न पाँव मुड़े , न सर झुके कि बस आदत है फ़रक लाने कि हिम्मत ये भी है ! काश आप को खबर होती आप जीत रहे हैं , और ये जंग है , फ़र्क पैदा होता है बिना बात मुस्कराने से सर हाथ किसी बहाने से बस होने से , मौज़ूद कि कोई अकेला नहीं है , जो है , वही अपना है , और आप हैं , वहाँ और फ़र्क पड़ता है ! (उन आंगनवाड़ी चलाने वाली हज़ारों महिलाओं को समर्पित जो एक पुरे सिस्टम के बोझ और बेकदरी के बावज़ूद रोज़ लाखों मुस्कराहटों को सींचती हैं, जाने अनजाने वो एक मुकम्म्ल फ़र्क पैदा करने की जिम्मेदार हैं। पटना, बिहार में १०० आंगनवाड़ी चलाने वाली दीदीयोंके साथ खेल से मेल/Play for Peace की सोच और प्रक्रिया बांटने के बाद ये समझ आया कि किस तरह हमारी व्यवस्था उल्टी चाल चलती है। ये हमारे समझ का व्यवस्था का संकुच...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।