बच्चे भी इंसान है, शायद इसलिए काम आसान है, इंसाँ गुनहगार है, सजा का हकदार है, रुकती और चलती हुई, साँसों के परे जाके देखो, बच्चे तो 'हमेशा' के लिए हमारे दिलो-दिमाग में घर करेंगे, कोई शक? तो फिर कौन मर गया, क्या वो इंसाँ थे, ज़ाहिर है? वो बचपन भी कभी इंसाँ था, कहाँ खो गया, क्या हो गया? उस दौर के हम इंसाँ है, या बेजान निशाँ हैं? गम होगा, आँसु भी, मायूसी, कुछ जल रहा होगा, कुछ पल रहा होगा, बस एक ही गुज़ारिश है, सर झुका के, बंधे हाथों, आँखों में खून न आने दें, हम आप थोड़े बहुत कम ज्यादा इंसाँ अभी बाकी है, और जाहिर है नाकाफ़ी हैं, दुखी होइए, जी भर रोइये, बस हाथ खड़े मत करना, छलक रहे हैं घड़े, और मत भरना, चलो वक्त को आसाँ कर ले, आँखों में चुल्लू भर सपने भर लें, 150 मुस्कानों का क़र्ज़ है, बस इतना फ़र्ज़ कर लें, दुनिया में हँसी कम नही पड़ने देंगे, Smile Please! (हाल में लाहौर में चिल्ड्रनस लिटरेचर फ़ेस्टिवल में शिरकत करते समय जब हम बच्चों के साथ खेल रहे थे तब हमने एक गाने की लाईन "दिल्ली से मोरा भाई लायो रे बाजरा_ _ _ " को बदलकर ...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।