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हमदिली की कश्मकश!

नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!

ज़ज़्बा ए इम्कान!

ज़मीन देखिए हमारा आसमान देखिए, हल्की सी चहरे पर मुस्कान देखिए, मुश्किल है! तो क्या आसान देखिए! सफर का सारा इंतज़ाम देखिए! एक हम ही नहीं है हमसफर उनके, जो आप उनके तमाम काम देखिए!! क्यों नहीं हो सकता आसमां में सुराख, इस जज़्बे पर रवैया इम्कान देखिए! कितनों को हांसिल है हमदिली उनकी, दिल का उनके खुला मैदान देखिए!! शोहरत से फिर भी ख़ासा डर है, कोई कह न दे 'अल्हा!' "बड़ा काम" देखिए! *Imkan - possibilities

अधूरी बातें!

किस्से बहुत हैं तेरे मेरे अफसानों के, ग़नीमत है के बात अब भी अधूरी है? कहानी पूरी भी नहीं है न अधूरी है, समझ लीजिए कैसी ये मजबूरी है? कोई पूछे ऐसी भी क्या मजबूरी है? ख्वाइशें एक-दूजे से अभी अधूरी हैं! सुबह मेरी है अक्सर रात उनकी है, मर्ज़ीओं को जगह अपनी पूरी है? यूँ तो मान जाएं हर बात उनकी, पर वो कहेंगे ये क्या जीहजूरी है? साथ भी हैं उनके और उनसे दूर भी, आदतों की अपने यूँ कुछ मजबूरी है! गुस्से में भी सारी बात उनसे ही, एक दूसरे के खासे हम धतूरे हैं! अब भी ख़ासा सवाल ही हैं आपस में, आपसी समझ बनने को ये उम्र पूरी है! दोनों के अपने अपने मिज़ाज हैं, साथ कायम होने ये भी जरूरी है! बंजारों वाली तबीयत है, तरबियत भी, और फिर थोड़ा बहकना भी जरूरी है!

@46

हर सूरत खूबसुरत है, जज़्बा है. जो सीरत है ! हर कदम आपके साथ है, हर साथ को सौगात है! कहने को कई सारी बात है, पूछिए आप, फ़िर बात है! सोच दूर तक जाती है, पैरों को जो माती है ! कोई डर नहीं है डरने में, जो है सो है, करने में! काम, कोई, आसान नहीं है, मुश्किल है पर आसमान नहीं है! देश धर्म जात सब बकवास है ख़ालिस  इंसानियत की प्यास है! जज़्बाती भी हैं और ज़ाहिर भी, और अपनेपन में माहिर भी! हर करवट, हर आहट शोर है, नींद को अपनी खासी कमजोर हैं! प्यासे हैं यूँ कर पिलाते हैं, कोई तारे तोड़ने नहीं जाते!

डेफ़िनेशन-ए- स्वाति !

स्वाति  एक  हसीन ज्वालामुखी अंदर  पिघला हुआ,  बाहर  ठोस, मजबूत नर्म  भी गरम भी  बे और शरम भी! स्वाति साथ   ख़ालिस  सौ फ़ीसदी  जब आपके पास हैं, तो आपके पास ही, आपही ख़ास भी, आपही रास भी ! स्वाति जज़्बात   हूँ! क्या कहिए ! एक आग का दरिया है, और डूब के जाना है, एक समंदर है, तर के, तैर के  साहिल को साथ लिए! स्वाति सौगात   ये पूछने की क्या बात? जानो, बूझो, समझो! अगर ख़याल है  फिर क्या सवाल है ? चकित करो! इंतज़ार क्यों? "रसिकपण च . . . .नाही" स्वाति शेफ़ जो है वही, सही! मुमकिन रवैया  परिभाषाओं के परे  नींबू, इमली, आम,  एक साथ कई काम,  गुठली के दाम,  आज़ादी का नाम  कॉफी की लहक,  चॉकलेट की चहक,  अहा! क्या महक ! और एक जाम बस, ज़रा बहक ! स्वाति मुलाक़ात   हाँ, ज़रा ठहरिए, अभी व्यस्त हैं, खुद से मिलने में,  और आप कौन? चलिए पहचान बनाऐं, ...... ...... पर! उसके लिए मिलना होगा! ज़रा ठहरिए! "अज्ञात...

एक शख़्स!

एक शख़्स हमारे खासे करीब है, हम से शिकायत के हमारे ग़रीब है! तमाशा है दुनिया का जिसको शरीफ़ हैं, एक शख़्स से पूछो तो खासे शरीर हैं! यकीन रखिये तो दुनिया अपनी ज़ागीर है, एक शख्स, हमको, फिर भी फ़क़ीर है!! दोनों को ही रास्तों में कितनी लकीर हैं, पैग़म्बर नहीं मालुम, एक शख्श पीर है! ये दुनिया साली चीज़ ही अजीबोगरीब है, दूर लगता है एक शख्स, इतना करीब है!! जो भी करना है, उम्दा सोच से करना है! एक शख्श को जोश-ए-ज़ज़्बा ही फरीज़ है! हमसे हमारी ही बातें करते रहिये, एक शख़्श अपने रिश्तों के नाज़िर हैं! हम से शिकायत ओ हम को आग़ाह भी, एक शख़्श शहंशाह ओ हमारे वज़ीर हैं!