सांप सुंघ लीजे. . . सांप भी मर गया और लाठी भी टूट गयी, आँखे खुली, खोलो!! समझ आये तो समझिये, न सांप, सांप था न लाठी मारने वालों की थी, इसे कहते है शातिर, पेश-ए-ख़िदमत है, हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था आपके ख़ातिर, आप जात बताइये, ये आपकी औकात, एक तरह का पौराणिक एप है, काम आसान करने वाला, किसका? मूरख सवाल पूछते हो, तभी तुम अछूत हो! अछूते.... तमाम मिडियोकर, गली के आवारा कुत्तों की तरह सर पर 24*7 लटकते, जातीय सचों को खिलौना बनाकर, एक बच्चा, खुद कठपुतली बनने से इंकार करता है, तो रोहित (वेमुला) उदित होता है, रोशनी बनता है, अगर आप को नहीं दिखती तो आप अंधे है, या जात या मानसिकता के पंडे, अवस्थी, तिवारी, श्रीवास्तव, गुप्ता, रेड्डी, नैयर, मेनन.... पंडे, जो हमेशा अपने झंडों पर खड़े होते है, किसने देखा है कि वो किनकी कब्रों पर गड़े होते हैं, इनकी काबिलियत पर प्रश्न नहीं उठा सकते, बड़े बड़े काम ये करते हैं, इतने बड़े घड़े बनाये हैं, पापों के, के सदियों से नहीं भरते, और जस्ट इन केस कभी कोई भारी भूल हो जाए, ...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।