बस इतने ही हम हैं! और आप? कहते हो ज़रा गहरा जाओ? गहराई डुबोती है, सतह सुरक्षित होती है, तारीख गवाह है, लाखों भूखे बेपनाह हैं, तीर मार लिया, आपने - पुर्वजों? दिन पे दिन खत्म होती जमीं कितनी नस्लें, ये ही तरक्की है, जिसका एहसान जताते हैं? फ़ुटपाथ पर भीख मांगते बच्चे क्या बताते हैं?
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।