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सुबह की दावत!

आहिस्ता आहिस्ता सुबह जागती है, क्या जल्दी, क्यों जिंदगी भगाती है? सुबह खिली है खिलखिला रही है, खुश रहने को आपको दावत है! सूरज खिलता है या की दिन पिघलता है, जलता है इरादा या की हाथ मलता है! सुबह के सच रोज़ बदलते हैं, आप किस रस्ते चलते हैं एक अंगड़ाई और एक सुबह, फांसला किसको कहते हैं? रोशनी उगती है अंधेरों में तो सुबह होती है, जाहिर है हर बात कि खास कोई वज़ह होती है! सुबह से सब के अपने अपने रिश्ते हैं, कुछ तनहा है, कुछ जलते कुछ खिलते हैं! एक सुबह आसमां में है, एक ज़मी पर, गौर कर लीजे आपका गौर किधर है! एक और सुबह सच हो गयी, अब और क्या चाहिए आप को?  अगर ये सुबह आप को मिल जाए, फिर क्यों कोई और अरमान हो? सुबह को शाम कीजे, दिन अपना तमाम कीजे, गुजर रही है ज़िन्दगी मूँह ढक आराम कीजे! हर रोज़ सुबह होती है, हर रोज हम निराश हैं, हर रोज चाँद ज़ाहिर है, फिर क्यों हम उदास हैं! 

शुरुवात अधूरेपन की

आज एक और शुरुवात, अब और भी कुछ अधूरा होगा आपका साथ है तो कौन जाने किस करवट सबेरा होगा बात दिल कि क्यों किसी तक पहुँचाएं, जो मेरा है वो सच जरूर तेरा भी होगा! कहते हैं सदियों से कि दिया तले अंधेरा होगा, लाजिम है देखने वाली नज़रों को फ़ेरा होगा? मैं बस अपनी समझ का ठेका लूँगा इसमें क्या किसी से राय-मशवरा होगा? अपने कई अंदाज़ों से मैं भी अजनबी हूँ, दो मुलाकात में न सोचें एक सच पूरा होगा! अक्सर वो मुझे मेरी कमियाँ गिंनाते हैं, अधुरा करते हैं ये सोच के कि पूरा होगा! यूँ नहीं कि अपनी खामियों को अज्ञात हैं पर सफ़र में वो सामान नहीं मेरा होगा!