सुबह सो रही है, जाग रही है या भाग रही है? रुकी है कहीं या अटक गई है, या अपने रास्ते भटक गई है? रोशनी की शुरुवात है या अंधेरों से निज़ात, या डिपेंड करता है क्या मजहब, क्या जात? सुबह बन रही है, या हमको बना रही है? शिकायत कोई? किसको सुना रही है? इंतज़ार करें? हाथ पर हाथ धरें? माथे जज़्बात करें? किससे क्या बात करें? सब राय हैं? हक़ीकत? नीयत? यक़ीन! यक़ीनन? डरे हुए हैं! शक़ से भरे हुए हैं! झूठ तमाम से तरे हुए हैं! फ़िर भी, चाहे कुछ, सुनिए, कहिए, गहिए, दिल में रहिए या ज़हन में! रोशनी, रोशनी है, अंधेरा अंधेरा! रोशनी भी भटकाती है! अंधेरा रास्ता भी दिखाता है! उनकी कोई धर्म-जात नहीं, उनको फ़ायदे-नुकसान की बात नहीं! आप तय करिये आप देख रहे हैं? या अपनी नज़र के ग़ुमराह? #ThinkBeforeYouVote
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।