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#ThinkBeforeYouVote !!

सुबह सो रही है, जाग रही है या भाग रही है? रुकी है कहीं या अटक गई है, या अपने रास्ते भटक गई है? रोशनी की शुरुवात है या अंधेरों से निज़ात, या डिपेंड करता है क्या मजहब, क्या जात? सुबह बन रही है, या हमको बना रही है? शिकायत कोई? किसको सुना रही है? इंतज़ार करें? हाथ पर हाथ धरें? माथे जज़्बात करें? किससे क्या बात करें? सब राय हैं? हक़ीकत? नीयत? यक़ीन! यक़ीनन? डरे हुए हैं! शक़ से भरे हुए हैं! झूठ तमाम से तरे हुए हैं! फ़िर भी, चाहे कुछ, सुनिए, कहिए, गहिए, दिल में रहिए या ज़हन में! रोशनी, रोशनी है, अंधेरा अंधेरा! रोशनी भी भटकाती है! अंधेरा रास्ता भी दिखाता है! उनकी कोई धर्म-जात नहीं, उनको फ़ायदे-नुकसान की बात नहीं! आप तय करिये आप देख रहे हैं? या अपनी नज़र के ग़ुमराह? #ThinkBeforeYouVote 

तमाम तस्वीरें!

तलवारों की ही धार हज़म करते हैं, युँ जिंदा उऩ्हें उनके जख्म करते हैं! उम्मीद ही को अपनी कसम करते हैं, अपनी ही मुश्किलों को तंग करते हैं! सच हो गये गुमशुदा पैसों के गलियारे में, खबरें पकती हैं तिज़ोरी के अंधियारों में! आँखे भींच ली कौन कहे अंधियारे में, खबर आयेगी तब सोचेंगे इस बारे में! फ़िज़ूल सब बोलियां आपकी, ये बिकने वाली चीज़ नहीं, वो कोई और दौर था, अब सच को कोई अज़ीज़ नहीं! वो जायके और थे जब हिम्मतों के दौर थे, खुली हवाओं के अब कोई वैसे मरीज़ नहीं! बड़ी शान से सब अपना धरम होते हैं, किसको फ़ुर्सत देखे, क्या करम होते हैं! झुका दिये सर जहां पत्थरों में रंग देखे बड़े संगीन बुतपरस्तों के भरम होते हैं! खुली दुकान है मुसाफ़िर सामान है, कीमत अजनबी मेहमान है, लगा लीजिये आपको जो मोल लगे, ये सौदा बड़ा आसान है! काम आसान हो कि चंद दरवाज़े खुले रखिये, अपने लूटेरों के लिये दिल में थोड़ी जगह रखिये क्या फ़रक पड़ता है कि तुम खुश हो, जिंदगी समझने लगे तो क्या तीर मारा, ये कहो कि चलते हुए कंकड़ चुभते हैं, और नज़र में कोई पौधे हैं जो उगते हैं!  आखिर किस बा...