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आवाज़ें!

चलिए सबसे प्यार करें नफ़रत से इंकार करें पूंजीवाद के बाजारों ने नाप तौल सब इंसानों को कम ज्यादा में बांटा है बड़ी चमक इन बाजारों ने "है", "नहीं है" में छांटा है! जहन में कब्ज़ा करती इस बदनियती को बर्बाद करें चलो! फिर प्यार करें! करने को हैं लाखों काम, हज़ार बातें,  सच तलाशना,  सवाल पूछना,  आवाज़ उठाना,  उनके लिए, जिनको खामोश किया है,  समाज ने, संस्कृति ने,  विकास ने, सरहदों ने,  जो जमीन पर है  ज़हन में भी! आईना हैं हम, दुनिया का, और सब अच्छे-बुरे का, जो नज़र आता है दूसरों में, गुण, दोष, और हर एक शख्स हमारा आईना है, हमारे किए का, और हमारी आवाज़ खामोशी है, किसी की! कहिए क्या कहना है, और गौर से ख़ुद को सुन लेना! और खेल है सब,  जो खेल रहे हैं,  अंजाने होकर,  कम ज्यादा होते,  ख़ुद में ही, खुद को,  ढूंढते, खोते,  जो कम करता है,  उसी को ढूंढते हैं,  जो ज्यादा है,  उसे ही बचाते हैं?  अपने ही डर से,  कैसे ये नाते हैं? फ़िर भी, यही दुनिया है, यहीं रोज़ हमारे हाथ गुजरती, पूछती हमसे क्या तुम्हारे उसूल ...

भाषा की आशा

भाषा है तो परिभाषा है, आशा है, निराशा है, (डिप्रेसन नहीं) समय ने तराशा है, उम्मीद है दिलासा है, (कंसोलेशन नहीं) पैसों की सबको अभिलाषा है, इसी लिए अंग्रेजी का चला सा है 😊 अपनी भाषा जमीन है, इंग्लिश आसमान है, पर बिना जमीन के कैसा आसमान? क्या होगी हमारी पहचान? दूसरे की सिखाए हुए, अपनी गवाएं हुए, अनेकता के यतीम!? तिल का ताड़, राई की पहाड़, गड़ेमुर्दे उखाड़, कैसे कहेंगे? कैसे सहेंगे? सेसमे का पाइन, मस्टर्ड का हिल, डेड बॉडी डिगिंग, ये बात नहीं बनींग! बाकी हम सब समझदार हैं! बोलियां बोलने वाले हमारे लिए गंवार हैं, व्याकरण पंडित है, व्यवहार है! गांव का लहज़ा अछूत है, नागवार है? पड़ा-लिखा तो समझदार है, इस दुनिया का तो बेड़ापार है!

खुली दुकान है!

छलकते लम्हे वक्त को मुँह चिड़ाते हैं, घड़ीयों के चक्कर मे कहां कभी आते हैं! कांटे घड़ी के क्या समझें वक्त की नज़ाकत, युँ चल रहे हैं धुन में जैसे सदियॊं की कवायत! भगवान को भागवान करते हैं युँ जीने का सामान करते हैं अपने यकीन से जुदा हैं लोग इबादत को दुकान करते हैं! तन्हाई की दुकानें कितनी, खरीददार कोई नहीं, जज़बातों के बाजार में, अपना यार कोई नहीं ! ससुरे सच सारे, और हम बेचारे, लगाये ताक बैठे हैं देखें अब बारी आयी है सो,अब तक तो पाक बैठे हैं!  हालात सारे बेहया ससुर बने बैठे हैं हाल हमारे नयी दुल्हन बने बैठे हैं! बातॊं-बातॊं में आ गये आसमान तक, युँ ही कुछ देर और कुछ आसान कर! दुआ है कि दुनिया थोड़ी काली हो, रंग कोई भी, गाली न हो सच को इश्तेहार नहीं लगता, और रंग को कोई माली न हो! रंग बिखरे हैं कितने मुस्कानों में, जो रह जाते हैं अक्सर छुप कर बहानॊं में, चलो लटका दें कुछ मस्तियाँ दुकानों पे,   नज़र कहाँ जायेगी आसमानों पर!  वक़्त खोटा है इसके झांसे में न फ़सिये, दिन गिनना छोड़िये, जी भर के हंसिये! मैं और मेरी आवारगी, हालात की कारागिरी, अजनबी मौके हर मो...