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कशिश - ए- खुदकशी!

मौत कितनी आसान है, जी करता है खुदकशी कर लूँ! जिन्दगी विस्तार है  दो हाथों में नहीं समाती , मौत आसान है, बाँहों में भर लूँ जिन्दगी कितनी लाचार, कितनी मोहताज़ है मौत का हर तरफ राज़ है  मौत जिन्दगी का ताज है  जिन्दगी मोह है, मौत सन्यास जिन्दगी अंत है, मौत अनंत  मौत पर न कोई राशन है, न प्रतिबन्ध  जिन्दगी है, न ख़त्म होने वाली लाइन का द्वन्द जिन्दगी अमीर है, गरीब है बेमुश्किल खरीद है मौत आसानी से हासिल  जिन्दगी के बदले की चीज़ है  जिन्दगी, कमज़ोर दिल वालों के बस की बात नहीं  मौत का कोई मज़हब, कोई जात नहीं जिन्दगी जड़ है, झगड़ा, फसाद है  सबको एक जैसी मौत को दाद है  आखिर कहाँ पहुंचा हमारा उत्थान है  कि मौत आसान है, फिर भी, जिन्दगी के पीछे दौड़ता इंसान है जो जुल्मी है, पापी है, शैतान है  उसी का सम्मान है! सरल, सहज, समान, हर एक को एक ही दाम मौत आसान है, इमान है  बिन मांगे मिल जाये वो सामान है सच कहते है, घर कि मुर्गी दाल बराबर ! पर क्या करें, जिन्दगी लालच है...