सताने लगी है शाम अब कम थोड़ी कम, आती है याद तेरी, अब कम थोड़ी कम ! जब से जिंदगी को समझने लगे हैं हम, फ़ांसले मौत से हुए कम थोड़े कम ! जब से तेरे साथ चलने लगे हैं हम, फ़ांसले मंजिलॊं से हुए कम थोड़े कम! कोई भी दवा ली जाये अगर ज्यादा, असर होता है उसका कम थोड़ा कम! आशियां तो हुए थे पहले ही बहुत कम, दिल में भी रहते हैं लोग कम थोड़े कम! याद आती है उनकी कम थोड़ी कम, भुलाने लगे उनको अब कम थोड़ा कम! (जी .वाय. भिड़े को याद करते हुए जिनके पुछे सवालॊं को मैं आज भी जी रहा हुं)
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।