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देश के भेष!

 

अरे!बाबा और 40 रेप!

एक समय की बात है, एक देश में रेप रहता था, कभी कभी, दबे पाँव, चुपके से, अंधेरे में, मौका ताड़ कर वो हो जाया करता था, उसको लोगों ने अलग अलग नाम दिए, कभी चीर हरण कहा, कभी गुरु का प्रसाद कभी बनवास, सब को लगा,  चलो कभी कभी हो जाता है, जाने दो! रेप ने भी बड़ी मेहनत की, उसने इज़्ज़त के धंदे में पैसे लगा दिए, बस फिर क्या था, बाज़ार गर्म होने लगा, लड़ाइयों में लोग रेप को मिसाइल बना लिए, रेप को फ़िर समझ आया, ताक़त के खेल में उसका भविष्य है, और वो जान गया कि मर्द सामाजिक विज्ञान का फेल है! बस उसने मर्दानगी के साथ MOU साइन कर लिया जब कभी किसी को कम पड़े, बस रेप से वो और मजबूत मर्द बने! बस फिर क्या था, घर घर में, गाँव शहर में, धर्म जात, अमीर गरीब, हर जगह रेप का बोलबाला हुआ, मरदानगी का ये ख़ास निवाला हुआ। बस में, हस्पताल में, चॉल में मॉल में, जेल में जंगल में, बालिका मंगल में.... रेप सर्वशक्तिमान, सर्वदर्शी, सर्वज्ञानी, सर्वभूत है, यानी रेप हमारे नए भगवान हैं इनके सामने बच्ची-माता सब 'सामान' हैं, क्षमा कीजिए!! 'समान' हैं चलिए रेप...

आंखों में, आंखों से...

रोज  जीते हैं, और मरते भी रोज़ हैं, अपनी ही आंखों में, आंखों से, आँख मिलाएं कैसे? सब जान कर, देख कर, न माने कैसे, और मान जाएं कैसे? अपनी ही आंखों में, आंखों से, आँख मिलाएं कैसे? जो 'है', वो 'था' अपने अकेले हैं और सब के साथ, क्या है हमारे हाथ? खाली हैं, तो क्या फैला दें? कोई वज़ह तो हो, खुद की पीठ ही सहला लें? मजबूर हैं पर मंज़ूर नहीं हैं, अपनी ही आंखों में, आंखों से, आँख मिलाएं कैसे? अपनी ही आह कब तक सुनें, कौन से दर्द चुनें, अपने या अपनों के? अपनी ही आंखों में, आंखों से, आँख मिलाएं कैसे? मुमकिनियत,  रवैया है या लतीफ़ा हौंसला बढाएं किसका किसकी पीठ सहलाएं? अपनी ही आंखों में, आंखों से, आँख कैसे मिलाएं? क्या तबीयत,  क्या तर्बीयत,  क्या हुकूक, क्या हक़ीकत,  हमारी वज़ा क्या है ओ रज़ा क्या है? बताएं? किसको,  कैसे  ?   अपनी ही आंखों में, आंखों से, आँख मिलाएं कैसे? टूटे काँच, बंद दरवाजे, गुमशुदा, साँसें या लाशें? हर कदम पहरा, शक गहरा, आईनों पर हरसू पहरा! अपनी ही आंखों में, आंखों से, आँख ...

हमारे विकल्प

बहुत विवाद है? मुश्किल में हैं? चिंता, शंका आपके दिल में है? जिनको बोलना चाहिए  वो चूहे से बिल में हैं! किसकी सुनें, किसकी मानें, लाठी अपनी किस पर ठानें? काहे के मर्द, कैसे मूछें तानें? बतलाए कोई, क्या करें बहाने? चिंता न करें आपके पास कई विकल्प हैं! चुनिए! विवेक से गुनिए, अंधभक्त सा न बनिए!  (a) मंदिर रेप करने के लिए हैं  (इतिहास गवाह है, देवदासियों की कसम) (b) मंदिर में भगवान नहीं होते (बाउंसर होते हैं जिनको पूजारी कहते) (c) रेप में भगवान शामिल थे  (आप लेफ्टिस्ट, देशद्रोही, हिंदू विरोधी हैं, जान बचानी है तो भागिए) (d) पूजापाठ से रेप का अपराध माफ़ होता है  (ये विकल्प चुनने से आप को "योगिश्री की उपाधी मिलेगी) (e) रेप हुआ ही नहीं  (ये ऑप्शन चुनने पर बीजेपी की आजीवन सदस्यता मुफ्त) (f) लड़की मुसलमान थी  (इस ऑप्शन के साथ आपको बीजेपी, आरएसएस, विहिप की सदस्यता मुफ्त) (g) भारत माता की जय   ( ये ऑप्शन अगर आपने चूना तो मर्दानगी का इलाज कराने के लिए हकीम साहनी से मिलें, पता - लखनऊ स्टेशन के रास्ते ...

#MeToo

अपने लिखें #MeToo तो दर्द होता है, कुछ की आँखे खुली हैं, भट्टा सी? कहाँ रहते हैं मर्द दुनिया के? अपनों के साथ रहते रहते भूल जाते हैं, सब, अपने गरेबां को, उन हाथों को जो मचलते हैं, थे? जब आप मौका थे, और आपके हाथ, कंधे, कोहनी चौका? भीड़ में, आपकी आँखें झांक रही थीं, उपर से, और ताक रही थी, शर्म को बेशर्मी से, क्या करें फ़ुर्सत ही नहीं मिलती, ज़ेब की गरमी से, अपने हाथ कब तक होंगे जगन्नाथ? रगड़ दो कहीं हाथ, हो गयी पूरी 'मन की बात' और खुजली भी कम, अगर आप सचमुच के, दिल के दर्द वाले मर्द हैं, तो लिखिए #MeToo अगर आप के भी हाथ कभी सटे हैं, भीड में आप भी कभी, जाने-अंजाने एक धक्के में बहे हैं, और नर्म-मुलायम कुछ तो छुए हैं? लिखिए #MeToo अगर, आपके भी ऐसे जिगरी यार हैं, जिनके सड़कछांप प्यार हैं, जिनके हाथ की सफ़ाई के किस्से मशहूर हैं, उनकी हिम्मत की आप दाद देते हैं, और थोड़ा शर्माकर उनसे वो तस्वीरों वाली किताब उधार लेते हैं? चिंता नहीं होती आपको, क्योंकि आपकी बहन उनकी भी बहन है! लिखिए #MeToo अगर आपने हज़ारों बार, छेड़छाड़, एसिड, दबोचने, नोंचने, जबरन पकड़ने, मसलने, बलात्कार की खबरें पड़ी हैं, ...

बेटी बचाओ ... बचा सको तो!

ये हमारा भारत है, बेशर्म बेगैरत है, सूरत कैसी भी हो इसकी, कुकर्मी इसकी सीरत है! यही हमारी नीयत है, यही हमारी नीति है, औरत वही जो चुपचाप, हमारी बदसलूकी सहती है! हमें गाय से प्यार है, उसके मुकाबले औरत बेकार है, यही हमारे शास्त्र हैं, यही हमारा संस्कार है। हमें छेड़छाड़ स्वीकार है, गोपियों के वस्त्र हमारे खेल हैं, गले मे सूत्र और नाक पे नकेल है, ये गुस्सा बेकार है, वही हो रहा जो हमें स्वीकार है! http://www.ndtv.com/chandigarh-news/bjp-leader-subhash-baralas-son-vikas-barala-summoned-after-police-watch-cctv-footage-of-stalking-1735246

पूरी दुनिया अधूरी कहानी!

मर्द और औरत, एक अधूरी कहानी, एकतरफा, मर्दों की जुबानी! तुम्हारी-हमारी माँ कि......बहन की.... दुनिया नहीं लायक...चाल-चलन की… मर्द और औरत बेगैरत और हैरत! काश सारे के सारे 'ना'मर्द होते, बड़े शरीफ़ औरतों के दुःखदर्द होते! मर्द हुए के फेर में अब मुए बहकाए, बाप, भाई, पति से कैसे प्राण छुटाए, कैसे प्राण छुटाए जान पे बन आई, औरत अपनी मर्ज़ी, तो बने मर्द कसाई! औरत की इज्जत महंगाई, मर्द की इज्जत घटिया, कहीं न बिकाई?? इतना भी क्या मर्द बनना, बेगैरत बेशर्म बनना, औरत सामान, कहें गहना, सजना के लिए क्यों सजना??? मानो न मानो ये खालिस सत्य है औरत, मर्द नाम की बीमारी से ग्रस्त हैं!!

हम साथ साथ हैं!

सुना है  भगवान का बलात्कार हो गया , कहने को दो मर्द थे , बेरहम , बेदर्द थे , भगवान ? हाँ जी , आप ही तो कहते हैं बच्चे भगवान का रुप हैं ,  किससे कहते अब तो भगवान बचाये ? पर सच समझना है तो , सच्चाई जानना होगी , दो मर्द दुकेले कैसे भगवान का रेप करेंगे ? सुसाईड़ मिशन तो था नहीं , वरना बात एक हफ़्ते दफ़न नहीं होती , सच्चाई ये है कि वो अकेले नहीं थे , वो उस समय अपनी जात , जी हाँ , जात जता रहे थे , " मर्द जात " बदजात ! बलात्कार एक हथियार है , उसको बनाने वाले , चलाने वाले , सब मर्द , बलात्कार कोई अकेले नहीं करता , करते वक्त उनके साथ , होती है एक संस्कॄति , चीरहरण की , इतिहास , जंग का , दंगों का , बेगुनाह छूटे साथियों का , हमारी याद , जो केवल अगली बड़ी खबर तक जिंदा है ,  तो अगर आप दोष दे रहे हैं , एक - दो मर्द को , और मांग रहे हैं , उनको सज़ा - ए - मौत तो आप केवल बचने की कोशिश कर रहे हैं ,  सज़ा आप को भी बनती है , हम सब को ,...

ना-शाईस्ता इश्क!

होगा इशक आपको दिल फ़ेंक कर मत दीजे , जो भी इज़हार है आँखे सेंक कर मत दीजे घूर के आँखों से उपर नीचे तक नापते हैं ,  क्या घर जाकर अपने बिस्तर जाँचते हैं ? सीटी मार के क्या संदेश भेजते है इज़्ज़त है नहीं तो क्या बेचते हैं ? मर्द होने की ये कौन सी निशानी है , तंग पतलून और हाथों की परेशानी है ? शराफ़त से घर अंदर भाई - बाप - बेटे हैं , बाहर क्यों ललचाए शीला की जवानी है ? मर्द भेड़िया है पतली गली में और कुत्ता शेर बिना भोंके लपकता है ज़रा मनाओ खैर ! कलाई मोड़ कहे रांझना कि इज़हारे इश्क है , इन ना-शाईस्ता सच्चाईयों से बदनाम इश्क है ! मोहब्बत की निशानी ताज़महल आगरा है , झूठ ! आज - कल सुना है इसका नाम वाईग्रा है ! भीड़ में धक्का , पीछे से चुंटी , और हाथ की सफ़ाई , महामारी हिंदूस्तान की और नाम इसका मर्दाई ! (ना-शाईस्ता - Obscene)

नापाक मोहब्बत

ढाई आखर रट - रट के सबको दिये बताये , लिये एसिड़ घुमत है चेहरा कोई मिल जाये! लगे लूटने इज्जत इतनी कम पड़ती है , मर्दों की दुनिया की ये कैसी गिनती है ? कम कपड़े थे , इज्जत कम थी फ़िर भी लुटे बड़े भिखारी मर्द , प्राण कब इनसे छूटे? हाय सबल पुरुष तेरा इतना ही किस्सा , आँखों में है हवस और हाथों में हिंसा? हाय अबला नारी तेरी यही कहानी , फ़िल्मों में पैसा वसूल है तेरी जवानी! घर में ही आईटम बन के रहना , बाहर भुगतना है मर्दों की नादानी ! लातों के भूत बातों से नहीं मानते , परिभाषा है मर्द की , जो नहीं जानते! नहीं चलती कहीं तो औरत का शिकार है ,  मर्द होना बड़ा फ़ायदे का व्यापार है! कमज़ोरी मर्द की औरत के गले फ़ंदा है, आदमी कौन सी सदी का भुखा नंगा है !

मर्द के दर्द!

कौन कहता मर्दों को दर्द नहीं होता , हम बस बयाँ नहीं करते , पैरों के बीच , ... वो . . . मतलब . . . यानि . . . न न ,  दिल में छुपा रखते हैं , खुद ही दारु - दवा करते हैं , थोड़े अंधेरों को हवा करते हैं , पर क्या करें ये खुजली कि बीमारी है , आप तो समझते ही होंगे , ( मतलब देखेते ही होंगे ) क्या करें कंट्रोल ही नहीं होती , और लातों के भूत , हाथों से नहीं मानते , अब आप को समझना चाहिये न . . . सामने क्यों आते हैं , सदियों से यही होता आया है , पेड़ , पहाड़ और औरत , इन पर चढ कर ही हम मर्द होते हैं , ये मत समझिये हमें दर्द नहीं‌ होता , अब हम तो मानते हैं , हमसे कंट्रोल ही नहीं होता , और फ़िर हम भेदभाव नहीं करते , 6 महीने की बच्ची , 60 साल की बूढी , स्वस्थ , सुंदर या अंधी - गुंगी , अमीरी से ढकी या गरीबी से नंगी , नोचते वक्त हम रंग नहीं देखते , और देखना क्या है ,  ज़ाहिर है , प्यार अंधा होता है , और उसी का धंधा होता है , बस सप्लाय कम है , ड़िमांड़ ज्यादा , वैश्वियकरण की नज़र से देखिये समस्या आसान है , ...