मामूली है जो बो ही ख़ास भी है, आसमाँ में भी है आसपास भी है! हलक फूटे हैं हलाक के डर पर भी। जो घुटन है वो आज तड़प भी है! हलाक - destruction, slaughter फिक्र है जो वो बेफिकरी बनी है! सवाल है जो वो ही उम्मीद भी है!! सर फूटे हैं और सुर मिल रहे हैं! जहां दर्द है वहीं सुकून भी है!! (हम देखेंगे, लाज़िम है के हम भी...) बांट दिया इतना के अब साथ खड़े हैं तरतीब में है जोश, वो ही जुनून में भी! ( तरतीब-in order) समझ है बहुत पर होशियार नहीं थे? वार करते हैं क्योंकि तैयार नहीं थे, वुजूद है जो वो ही बावुजूद भी है? जो कानून है वो ही गुनाह भी है! बेड़ियाँ उनकी क्यों हमें मंजूर हैं? जो कन्याकुमारी वो ही कश्मीर भी है?!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।