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हम काफ़िर!

हम काफ़िर हैं झूठे यकीनों के, दीवारों में चुनने के काबिल हैं क्या? अकीदत और इबादत के गैर हैं हम, आपकी दुआओं से खैर हैं क्या? सजदा करें इतनी अना नहीं हममें,  ख़ाक से पूछिए ख़ाकसार है क्या? अपने गुनाहों को गंगा नहीं करते, जो एहसास न हो वो वजन है क्या? "जय श्री" जोश में कत्ल कर दें कोई आप ऐसे कोई अवतार हैं क्या? भक्त भीड़ बन गए हैं तमाशों की, सारे अकेलों की कहीं भीड़ है क्या? हम मुसाफिर हैं तलाश तख़ल्लुस है, ज़िंदगी मज़हब के वास्ते है क्या?

तीन कदम

गुम हो, गुमसुम हो, रास्ते नहीं मिलते कदम हिचक रहे हैं इरादे खामोश हैं ये कौन मंजिल है? ये क्या हासिल हैं? क्यों मझधार साहिल है, कहां जाएं? पहला कदम! मान जाएं, हवा, पानी,  फूल पत्ते, हरियाली, नील गगन सूरज के आते-जाते अदभुत रंग, आपके लिए है, दुनिया इस ढंग दूसरा कदम, जान जाइए, आप मिट्टी से जुड़े हैं ठीक उसी तरह,  जैसे हर जीवन, सब की यहीं जड़ें हैं, हर एक अधूरा है, मिलकर सब पूरा है, कोई कम नहीं, किसी से, किसी वजह से, किसी भी, तो अब जब चल दिए हैं, पहला कदम, दूसरा भी तीसरा कदम, पहचान जाइए, रास्ते चलने से बनते हैं, चलते चलते रास्ते बनते हैं। चलिए आप अपने सफर, फिर कहीं मिलते हैं!

क़ाबिल सफ़र!

एक सफ़र के पुरे हो गये, ज़िन्दगी को ज़रा अधूरे हो गए, बाँट आये लम्हे अज़ीज़ कई मोड़, और चंद रिश्तों के मज़बुरे हो गए! अंजान जगह थीं और, हर कोई अपना निकला, सच जो भी आया सामने, सपना निकला! अज़नबी बन बन यक़ीन सामने आते रहे, काम अपना था और अपने काम आते रहे हर लम्हा लोग मुस्कराते रहे, यूँ सब अपनी बात समझाते रहे। अपने इरादों के सब काबिल निकले, हमें उस्ताद कहें ऐसे सब फ़ाज़िल निकले! आ जाइए तशरीफ़ लेकर जब मर्ज़ी, दावत है, सीख़ ही जायेंगे कुछ तो, रवैया है, आदत है और एक सफ़र मकाम हो गया,  मुसाफ़िर का काम आसान हो गया! इतने ठिकाने मिले दिल घर करने को,  अपने से ही हम ज़रा बेगाने हो गये! अधूरे फ़िर अपने फ़साने हो गये,  कुछ वो बहके कुछ हम दीवाने हो गये!

यकीं यूँ कि. . . !

वो भी अज़नबी था और तू भी अज़नबी है, तख्त पलटा भी है या ये झूठा यकीं है? यकीं का खुदा कौन हो, यकीं को जमीं कौन हो अज़नबी का यकीं करें फ़िर अज़नबी कौन हो? तमाम यकीं है और युँ ही तमाम होते हैं, आँखें बंद है और उम्मीदों पे जवाँ होते है! तख्त की बात करके क्यों अज़नबी करते हैं, दिल में रखिये दिल का ही यकीं करते हैं! अपने पर ही यकीं रखिये लंबे साथ आयेगा, पैर फ़िसले भी तो दूसरे का नाम नहीं आयेगा! इतना कीजे यकीं कि उसको भी आ जाये लड़खड़ाते पैरों को जैसे जमीन आ जाये! रंग आसमां के जमीं के, थोड़े कुछ आपके यकीं के नज़र बायें करिये ज़रा, रंग और भी हैं जिंदगी के! अब ये ना कहिये कि बेवजह नुक्ताचीनि करते हैं, नमक आपका है, हम बस जरा नमकीं करते हैं!

आईये ! / The Invitation!

मुझे मत बताओ कि जिंदगी कैसे कटती है  ये बताओ कि अंदर से आवाज़ क्या आती है, और क्या वो सपने देखने की हिम्मत तुम में है, जो तुम्हें अपने दिल की तड़प तक ले जायें?  मुझे अपनी उम्र कि लंबाई नहीं बताओ, ये कहो कि मुरख बनने का जोखिम उठा सकते हो? प्यार के लिये, सपनॊं के लिये, जिंदगी जीने के रोमांच के लिये!  क्या फ़रक पड़ता है कि तुम्हारे ग्रहॊं की क्या दशा है ये कहो कि, 'अपनी दुखती रग' पर तुम्हारा हाथ है क्या? जिंदगी की ठोकरॊं ने तुम्हे खुलना सिखाया है? या आने वाले जख्मॊं के ड़र से तुम ने अपनी पीठ फ़ेर ली है? जिंदगी से!  जरा ये बताओ कि दर्द को, मेरे या तुम्हारे, बिना कांटे, छांटे, छुपाए, निपटाये, क्या तुम अपने साथ रख सकती हो? जरा सुनूँ, क्या तुम आनंदित हो, मेरे या तुम्हारे लिये! और क्या झुम सकते हो ऎसी दीवानगी से, कि तुम्हारे हाथ-पैर के छोर हो जायें भाव-भिवोर बिन संभले, बिन समझे, बिन जाने, कि इंसा होने कि हदें होती हैं!  तुम जो कहानी मुझे सुना रहे हो वो सच हो न हो, ये कहो कि खुद का सच होने के लिये, क्या किसी और की नाउम्मीदगी बन सकते हो, और अपनी अंतर...