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दौर-ए-सियासत!

सरकार दीवार बन गयी है, व्यवस्था ज़ंजीर बनी है, जमूहरियत में कैसी ये, तानाशाह तस्वीर बनी है? गुलामी के दौर हैं, गुलामों की सियासत है, किसके मथ्थे जड़ें,  अज़ीब ये हालात हैं   ज़महूरियत तानाशाह बन गयी है, फ़ासिवाद की पनाह बन गयी है! डर सारे यकीन बन गये हैं, सच जिद्द बन गयी है ,सियासत की, ज़ुल्म है, जो बिन पूछे बगावत की! हर एक कत्ल जन्म देता है नफ़रत को,   ये कौन सी फ़सल की तैयारी है, कौन सी नस्ल की! रोज़ होते हैं, हर और हर हाल, गुनाह नहीं है तहज़ीब का सवाल! दुनिया गयी भाड़ में, तरक्की की आढ में, छाया काट रहे हैं, सब धूप के जुगाड़ में! सियासत साज़िश बन गयी है, फ़िरकापरस्ती नवाज़िश, इंकलाब की सिफ़ारिश है, खामोशी अब मुहलिक(Fatal) है!