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मशकूर मुसाफ़िर

इंसान होने का सफ़र, और उसका असर हर ज़ज्ब करती नज़र से हर मुस्कराहट से खुले दिल और फ़ैली हुई बाँहों से खेल है ये बच्चों का कहने को कुछ नहीं करना ही उनका कहना है, कुछ उम्मीद से मेल खायेंगे हमारे इरादे और हरकतें, ओ' इस के लिए हम मशकूर हैं! We travel to become human and human we become with every glance with every smile with open heart  and welcome arms It is indeed a child’s play for they need not say they show the way believing we may Unite in our intention and action, for that we are grateful

सचपन!

सचपन! 8-10 साल की उमर , और मज़बूत कमर ,  एक और को संभालने को , खेलने की उमर है , बचपन नाम है , चंचलता पहचान है , हरकतें है वैसी ही , और बड़ी जान है , तैयार फ़िर भी , हमेशा , अपनी नज़र और  अपनी कमर से , कब रो दे ,  माँ रोटी करती है , भूख लगी है ,  माँ पानी भरती है , गिर गया ,  माँ मज़दूरी पे है , आप ही बताईये ,  क्या कहें ? बचपन है? पर ये कह कर दूर खड़े होना , बचकाना होगा , बदनाम , बचपना होगा , इसलिये कमर कसते हैं , हंसते हैं , यही हमारा सच है , गुम कहीं बचपन है , जो है बस यही सचपन है !! (सरकारी आँकड़े कहते हैं, बच्चे स्कूल जाते हैं, और सच, छह मुसहर बस्तियों में से लगभग सभी बच्चे स्कूल नहीं जाते!)