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मुकम्मलियत मुबारक!

हम भी आतंकी हैं हम भी खूंखार हैं, भयंकर हैं हम, हम भूत सर सवार हैं! कातिल हैं हम, वहशी भी अपरंपार हैं, हम ही शैतान हैं, हम कहां खबरदार हैं! हम छप्पन नहीं बस, हम पैंसठ साठ हैं, सत्तर पचहत्तर हैं हम नंबरदार हैं!! बड़े काम के हैं हम जब हम बेकार हैं, बोझ हैं जमीन पर, मिट्टी के गुनहगार हैं! हम ही बंदूक हैं, टैंक हैं, उड़ती मिसाइल हैं, आने वाली पीढ़ी को बड़ी घटिया मिसाल हैं! हम भगवान भी हैं, हम ही अपने निजाम हैं, हम से गलती नहीं होती, निष्कल आवाम हैं!

लाहौर-दस साल पहले

10 साल हुऐ पाकिस्तान गए थे, बनने (थोडा और) इंसान गए थे! बन कर मेहमान गए थे, एक मुश्किल (चार लोग जो बोलते हैं)  को आसान गए थे, जो मिले सब दोस्त हो गए, शक सारे खामोश हो गए! गले मिले आगोश हो गए, जज्बे सब के जोश हो गए! आज वो माहौल नहीं है, दिन, महीना और साल नहीं है, ज़हर का बाज़ार बना है, उसमें कोई इंकलाब नहीं है! हम वही, दोस्त वही हैं, दोस्ती ये खामोश नहीं है, अफ़सोस बहुत है, मिल नहीं पाते, उम्मीदों को यूं सिल नहीं पाते! तैयारी अब भी वही है, इंतजार की प्यास वही है, आस वही है, रास वही है, कोशिश का आकाश वही है! ये दुनिया रास्ते भटक गई है, नाप तोल में अटक गई है, संवेदनाएं मज़हब बन गई, इंसानियत फंदा लटक गई है!!

हिम्मत के हथियार!

हिम्मत के हथियार चाहिए नफरत नहीं प्यार चाहिए अपने हाथों में हो अपनी कश्ती की पतवार , हिम्मत के हथिया र, हिम्मत के हथियार.... कौन कहे किस को बेगाना , मजहब किसने समझा जाना मंदिर मस्जिद की बातों में, नफरत से इंकार हिम्मत के हथियार, हिम्मत के हथियार.... कब तक हम बर्दाश्त करेंगे, मासूमों पर वार सहेंगे दिल में अपने प्यार जगा दे, अब ऐसी ललकार हिम्मत के हथियार, हिम्मत के हथियार.... अपने सबको ही प्यारे हैं , बीच में कौन से दीवारें हैं गुलशन हरसू फूल खिला दें, ऐसे कारोबार हिम्मत के हथियार, हिम्मत के हथियार.... हमको सबका साथ चाहिए, हर झगडे की मात चाहिए नेक इरादों के मौसम से, ये दुनिया आबाद हिम्मत के हथियार , हिम्मत के हथियार.... सबके दिल में आस चाहिए , उमींदों की प्यास चाहिये मौसम बदलेंगे जब बदलें, मौसम के आसार हिम्मत के हथियार, हिम्मत के हथियार.... हक की सारी बात चाहिए नहीं कोई खैरात चाहिए, चलिए बनें संविधान के ऐसे पहरेदार, हिम्मत के हथियार, हिम्मत के हथियार.... हमको खबर ए यार चाहिए दोस्ती भाईचार चाहिए रि...

#ThinkBeforeYouVote !!

सुबह सो रही है, जाग रही है या भाग रही है? रुकी है कहीं या अटक गई है, या अपने रास्ते भटक गई है? रोशनी की शुरुवात है या अंधेरों से निज़ात, या डिपेंड करता है क्या मजहब, क्या जात? सुबह बन रही है, या हमको बना रही है? शिकायत कोई? किसको सुना रही है? इंतज़ार करें? हाथ पर हाथ धरें? माथे जज़्बात करें? किससे क्या बात करें? सब राय हैं? हक़ीकत? नीयत? यक़ीन! यक़ीनन? डरे हुए हैं! शक़ से भरे हुए हैं! झूठ तमाम से तरे हुए हैं! फ़िर भी, चाहे कुछ, सुनिए, कहिए, गहिए, दिल में रहिए या ज़हन में! रोशनी, रोशनी है, अंधेरा अंधेरा! रोशनी भी भटकाती है! अंधेरा रास्ता भी दिखाता है! उनकी कोई धर्म-जात नहीं, उनको फ़ायदे-नुकसान की बात नहीं! आप तय करिये आप देख रहे हैं? या अपनी नज़र के ग़ुमराह? #ThinkBeforeYouVote 

अतिका और रज़ाबन्दी!

हमारी दुआ के ज़रा करीब हो गए, हालात ऐसे अजीबोगरीब हो गए! मुल्क के अपने जो ग़रीब हो गए? दुनिया के थोड़े करीब हो गए! मिट्टी इंसानियत की मुबारक़ हो, नए आप के सब दस्तूर हो गए! सरहदें कसूर बनेंगी ये कब सोचा, वो ओर! जो लकीरों के फ़क़ीर हो गए! हार नहीं मानी, ये उनकी परेशानी है, जिद्द तो थी ही, थोड़े हम शरीर हो गए!! हालात-ए-अंजाम के नज़दीक थे, अपने खातिर हम बेपरवा हो गए! मुसीबत बड़ी, फिर भी काम हो गए, एक दूसरे को हम आसान हो गए! शिकन पेशानी के सब खत्म नहीं हैं, फिर भी चेहरे हमारे मुस्कान हो गए!! (Atiqa & Raza are Peace Activist and dear friends from across. They have been through very difficult times last 12 months. They are together and travelling. It is a blessing☺️)

मेहमान नवाज़ी!

उनकी दुआ में जिक्र हमारा था, खुदगर्ज़ जुबां से आमीन निकले! सरहदें जिनको ख़ामी नहीं करती, दोस्ती दिल से ओ दुआ आमीन निकले! अपनों की ये क्या शिकायत है, क्यों अज़ीज़ अजनबी निकले! न कोई गिला न शिकायत कोई, बड़े अपने, सब अजनबी निकले! हमसफ़र सब अजनबी थे, बड़े आसां ये सफर निकले! दिल जीत लिए,बड़े, शातिर मेहमाँ निकले! अज़ीज़ सारे इतेफ़ाक़ निकले दिलों के सब साफ़ निकले

हिंसा और हम-आप!

हिंसा क्या है, टॉम और जैरी की, मारापीट को देख, उछलते, बच्चे को देख कर खुश होना! हिंसा क्या है,  जात-पात,मज़हब, अगर वजह है, कि दिल में कम जगह है! हिंसा क्या है, कचरे के ढेर में गैरकानूनी घर बसाये लागों की बेदखली! हिंसा क्या है? मां-बाप नहीं सुनते, बच्चे ने कहा है, उसे किसी ने छुआ है! हिंसा क्या है 4 साल के बच्चे का स्कुल से आना और होमवर्क पर बैठना! हिंसा क्या है, भीड़ में, मैले कपड़ों में कोई पास गुजर गया, आप छिटक कर दूर गए! हिंसा क्या है, आपके घर नौकरानी है कुछ आपका खो गया, कहाँ आपका शक गया? हिंसा क्या है, आपकी माँ है कपडे आपके, और वो धो रही हैं! सालों से! हिंसा क्या है, कभी गाली दी है, और आपकी भी, मां-बहन है! हिंसा क्या है, गुटखा थूकते हुए साइकिल रिक्शे से कहना, ज्यादा होशियार मत बनो! हिंसा क्या है, किसी की जात पूछना, और ख़ुश होना अगर वो आपके जैसा है!  हिंसा क्या है, धार्मिक होना और दूसरे धर्म का मज़ाक उड़ाना! हिंसा क्या है, जो भी हो, बेवजह है! आप को गुस्सा आया? हिंसा क्या है, लड़की दे...

सरहदें

सरहदें,  मुल्क की, जात कि, औकात की,  बिना बात की,  पैरों की बेड़ियाँ,  चटखती एड़ियाँ,  सामने समाज की दीवार,  और अंदर यकीन लाचार,    किससे मिलें, क्या सोचें,  तौलें या तुलें,  मुस्करायें या हाथ मिलायें,  मैं अपने दायरों में फ़िर भी बंधा नहीं, उड़ने के लिये मुझे आसमाँ बहुत! कितनी दूरी रक्खें,  कितने नज़दीक आयें,  किसे अजनबी रहें, किससे पहचान बनायें,  गले मिलें! और कहीं‌ गले पड़ जायें? किस ज़ुल्म पे चीखें,  किसे हज़म कर जायें? मस्ज़िद टूटी तो "हे राम" मंदिर को हाथ लगाना हराम? कहाँ खीचें लक्ष्मण रेखायें? सामने घूंघट/ परदा कर के आयें, पर्दे पर आज़ादी,  "बेबी ड़ॉल" वो सोने की,  उसको क्यों कपड़ॅ पहनायें,  रात में ज़लदी घर पर आयें,  कहाँ कहाँ खींचें लक्ष्मण रेखायें? जात बतायें या जात छुपाएं,  सामने इंसान है या बम्मन ?  (माइंड़ मत कीजिये प्लीज़, बम्मन से मतलब है पूरा सवर्ण वर्ग, राजपूत, ठाकुर, २,३,४ वेदी, पाड़े, सक्सेना, माथुर, गुप्ता, कंसल, बैनर्जी, सिन्हा, नैयर, तिलक,...

और लाहौर!

यूँ नज़र आये खुद को इन दिनों, अपने ही बड़े काम आये! यूँ मिले अजनबियों से इन दिनों, अब अपनों में उनका नाम आये! यूँ सपनों को संवारे हैं इन दिनों, अपनी हकीकतों को रास आये! इल्म था, एहसास था, अब खबर है, अब के बार जो वहाँ घूम आये! यूँ गले लगाये कि हम तारीख हैं, हम में जो उनको अपने नज़र आये! दिल में थी, जगह उनके, ज़हन में थी हमारे यकीं को रास्ते नज़र आये! नफ़रते तो यहाँ भी तमाम पलती हैं, क्यों उनके गैहूँ में नज़र घुन आये?

मुसाफ़िर-संगी-साथी!

इमरोज़   एक और लड़ाई है , अब इसका नाम पड़ाई है ! मैदानों में खड़े होकर , अपनी हिम्मत से बड़े होकर , चड़कर सीड़ियाँ , जो कभी तो नज़र नहीं आती ! और कभी लोग तोहफ़े में देते हैं , यकीन है हमेशा से , कभी मेरा , कभी लोगों का मुझमें , जो अकेला नहीं होने देता , हमेशा साथ है , कभी मेरा जुनून , कभी मेरी जरुरत , जुड़ने की , अपने से , और सच्चाईयों से जो जरूरी हैं , सब की जगह है दुनिया में , और सबके हिस्से आसमान मिलेंगे , सफ़र अभी ज़ारी है सैम और सैरा (Sam and Sarah) का , थकना सिर्फ़ एक विचार है , साथ ले कर निकलें वो अचार नहीं , और रुकना एक भ्रम , क्योंकि साँस चलती है , और उसके बाद . . . कही - सुनी बातें मत करिये , क्या सपने नहीं‌ आते ? आँखों‌ देखा सच होता है , कहते हैं ना , जवानी आती उम्र के साथ है , और जाती है इरादों से , यानि , कम होने से , और सच कहें तो सफ़ेद बालों की जवानी , उसका कोई सानी नहीं , जोश , जुनून और समझ , जो आपको नज़र देती है , सिर्फ़ नज़रिया नही , तो चलिये , जिंदगी से ...

मज़हब, इंसान और ...

राम का नाम , करने लगे काम तमाम , करते हैं खुदा का सौदा , और रंगीन शाम कौन कहता है अल्लाह के बंदे हैं ? दुनिया गटर है , और कीड़े गंदे हैं ! रख दिया आदमी का नाम ' आम ' एक के खून को बनाते है दूसरे का बाम... अपने मुल्क में इंसानों की फसल अच्छी है,  जब चाहे काट लो, छांट लो , बाँट लो, सप्लाई ज्यादा, डिमांड कम हो, तो कौडिओं के दाम लगते है, और फसल स्लम में हो तो पैदावार/यील्ड भी जबरदस्त, दो बीघा जमीं में बीस परिवार, इस से पहले की कोई सरकारी योजना की बीमारी लगे काट लो, छांट लो , बाँट लो, अब अल्ला मियां को थोडा और काम होगा, बन्दों तक कैसे पहुंचे, सजदा होते सरों को तो लाऊड- स्पीकर कान होगा, और वहां की आवाज़ वर्तमान की मुलाजिम है और जो अल्ला मियां से ज्यादा अपनी सोच पर यकीं रखते है दुनिया की चमक, रफ़्तार, और गरज़ अब सबकी अकीदत में सेंध लगा चुकी है सलाम अब सलामती हो गया है, वालेकुम किसी कोने में खो गया है!