इंसाँ होने की कोशिश हज़ार हैं, पर अकेला बेचारा क्या करेगा! सब अपनी शोहरत के सामान हैं बेवजह ही आईने बदनाम हैं हमसे नहीं होता कामयाबी का खेल, वो फिर भी कहते हैं हम इंसान हैं अपनी तस्वीरों के सब गुलाम हैं और हमको लगता है भगवान हैं अगर सच अद्वैत है तो दोगला है मज़हब का नतीजा बड़ा खोखला है घूमते लिख के डिग्री ओ तजुर्बा माथे पर शायद कोई रख्खे की काम का सामान हैं आपकी तराजू आप की मुबारक हम क्यों किसी के काबिल बनें आचरण के दर्ज़ी तमाम हो गए इंसान नापने के काम आम हो गए
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।