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जमूरा जम्हूरियत का!!

चौकीदार - ए जमूरा जमूरा - जी चौकीदार चौकीदार - बोलेगा जमूरा - बोलेगा चौकीदार चौकीदार - जो बोलेंगे वो सोचेगा जमूरा - जी चौकीदार चौकीदार - तोता बनेगा जमूरा - जी चौकीदार चौकीदार - बंदरी बदरंगी बनेगा जमूरा - जी चौकीदार चौकीदार - जो भेजेंगे वो पड़ेगा जमूरा - जी चौकीदार...फॉरवर्ड भी करेगा चौकीदार - सवाल पूछेगा, जमूरा - जी चौकीदार सरकार - क्या ?(थप्पड़, घूंसा, लात) सरकार - सवाल पूछेगा  जनता - नहीं सरकार सरकार - सवाल सोचेगा  जनता - नहीं सरकार सरकार - बोल जंग जनता - जंग जंग जंग सरकार - वार  जनता - वार वार वार सरकार - मार डालो  जनता - मार डालो मार डालो!

हम लोग!

  रीढ़ की हड्डी पहले ही नम थी, अब ऑक्सीजन भी कम है! जो बोया वही काटते हैं, आख़िर किस बात का गम है? सच का सामना हुआ अब, तो मन की बात झूठ लगती है? अब पछतावत होत का, नफ़रत ऐसे ही फलती फूलती है! जो नज़र ही न आए, वो सच है के झूठ? भक्ति का काम है जपें "बहुत खूब, बहुत खूब"! मरने वाले सब लाश हो गए, ज़िंदा हैं जो काश हो गए, ध्यान से सुनिए खबर, सच सब सत्यानाश हो गए! अच्छों अच्छों के पाप धुले हैं,  डुबकी लो बस आप भले हैं! उनके गुनाह नहीं गिनते मूरख,  जो गाय दूध-मूत धुले हैं! कुम्भ_करन को सब जाएं,  करमकांड को करम बनायें, भक्ति मोह-माया बन गई,  एक दुजे से होड़ लगाएं!   

कत्ल–ए –ख़ास!

हिन्दुस्थान ने भारत का कत्ल कर दिया, हथियार पर धर्म की धार थी, जय श्री जय श्री उसकी ललकार थी, जुबां पर खून तो पहले ही चढ़ा था, बहती गंगा में सब ने हाथ लाल किए, सवाल पूछने वालों के गले कमाल किए मिठाइयां बंट रही हैं, जश्न मन रहे हैं, भक्ति के नए मतलब निकल रहे हैं, अहंकार से अब भगवा मल रहे हैं, हरे को हरी के रंग में ढाल दिया है, हिंदुत्व ने बड़ा कमाल किया है!!

बेवजह सांसे!

  ज़िंदा हूं जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूं, अपनी बेशर्मी में पनाह लिए जा रहा हूं! उम्मीद भी नहीं बची और यकीन भी यतीम है, इस बेबसी को अपनी शमा किए जा रहा हूं! रोशनी भी है और तपिश भी अभी बाकी है, ख़बर नहीं किसको फना किए जा रहा हूं? जाहिर है वो सूरज भी रोशन होगा एक दिन, क्यों हालात को गुमां किए जा रहा हूं? नहीं आना है इस नामाकुल दुनिया में हरगिज़, क्यों फिर इतना पशेमान हुए जा रहा हूं? सिफ़र होने की तमाम कीमतें हैं इस उम्र, क्यों रिश्तों को सामान लिए जा रहा हूं?

आबाद तबाही!

तबाही में सब आबाद होते हैं, यूं इस मुल्क में बरबाद होते हैं। चौखट पर बैठे हैं हैवानियत के, इस दौर में जो नाबाद होते हैं? एक ही बीमारी के सब मरीज़, नफ़रत के अपनी धारदार होते हैं! मज़लूम हैं वो ही बर्बाद हैं, ओ हम पूंजीवाद के क्यों तरफ़दार होते हैं? ख़ुद से सोचना गुम होता हुनर है, हवा की रुख के अब सवार होते हैं! पेशेवर सब नए गुलाम हैं काबिल, हुक़्म कोई भी हो, सब तैयार होते हैं! क्या मजाल किसी की, अलग सोच ले, जो हैं वो सब दर रोज़ गिरफ़्तार होते हैं!

365 दिन, कश्मीर बिन!

365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद? और आपको ज़िंदगी से कोई शिकायत? 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, देश में चलती राममंदिर की कवायत! 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, ये  लोकतंत्र पर भद्दा पैबंद! 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, TV पर देखा आपने, होकर तालाबंद! 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, और आपको अच्छे दिनों की ख़बर होगी? 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, फेक एनकाउंटर से आप बहुत खुश होंगे? 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, इस बात पर कब दिए जलाएंगे आप? 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, और आपके बच्चे क्या खेल रहे हैं?  आजकल?। 365 दिन कश्मीर कैद में है, नज़रबंद, आप क्या अब भी हिंदुत्व के गुलाम हैं?

सच आसपास!

हालात, बिगड़े हुए, और  बिगड़ेंगे, टूटे हैं जो, और बिखरेंगे, कमज़ोर चूस कर ताकत बढ़ाते हैं, आपने किस को वोट दिया? था? संस्कृति पुरानी है, गौरवशाली, कड़वे सच रौंद कर, मन की बात, इतिहास, बन रही है, अंधभक्तों की  नई जमात, गर्व से कहो... "जिसकी लाठी उनकी भैंस" बुरा लगता है देश अपना समाज अपना धर्म, जात वर्ग, अपना, अपने द्वारा, अपने लिए, बाकी सब ? पतली गली से निकलिए, गांव, झोपड़-पट्टी, कचरे पर, कचरा जोड़, बेच, पैबंद लगी दीवारों की बस्ती! मेरा भारत महान, मेरा सामान, मेरी दुकान मालिक, सरपरस्त, सेठ, नेता, प्रधान, सर्वेसर्वा कितने नाम, ऊंची दुकान  फीके पकवान, मुसीबत में सब उड़नछू हराम!  हेराम! आपका वोट आपका अंजाम! सच जानेंगे या मनकही मानेंगे? अनकही बातें,  अदृश्य, अनगिने लोगों की, अनचाहे लम्हों की, अनगिनत मुश्किलें, उबलते सवाल, क्या आपको नहीं हैं? जो होता है क्या वो सही है? आपके सवाल कहाँ हैं?

बात खत्म! अब सब ठीक है!!

मंदिर वहीं बनेगा! बात खत्म, अब सब ठीक हो जायेगा। टूटी मस्जिद में राम नाम कब्ज़ा जमाएगा गुम्बज़ चढों को मोक्ष, भाषण बाजों को भारतरत्न, ईंट उठाने वालों को स्वर्ग, और चुप बैठे रामभज हैप्पी गो लकी चैन की नींद सोएंगे आज भी!! संविधान (नदारद) मुबारक हो!! तलाक तलाक तलाक बात खत्म, अब सब ठीक हो जायेगा। जैसे कि पुरा का पूरा मज़हब गंगा नहाएगा शोर ऐसा है जैसे कि आज़ादी आई है? औरतों की, बुर्के वाली, जिनके जांघों के बीच आपने इज्ज़त लुटाई थी, कल भी, आज भी और कल भी, मज़बूरी!! दंगों में करना होता है, बस अब गंगा सफ़ाई है, कानून तोड़! बड़ी हिम्मत आई है बोलो मर्द नली की जय बोलो बोलो बज_ _  _ ली हो भय! ब्लैकमनी, आतंकवाद का खात्मा! बात खत्म, अब सब ठीक हो गया जमीर अमीर हो गया पैसा नीर अकल ठिकाने, चाहे गद्दे नीचे रही या चावल कनस्तर सच मजबूर, सामने आ गया, उसको लाइन लगा मार डाला! मजबूरी गुनाह साबित हुई, कौन थे जिनके घर दावत हुई? और दिन अच्छे? पुलवामा, खून पसीने की कमाई थी? अडानी, अंबानी दिन रात एक एक कम...

श्रदांजलि लोकतंत्र!

हद है, बेहद है, बद से बदतर है! पैर बेसिर है, कलम सर है, तलवे चटे हुए, जहन बंटे हुए, चाल भेड़ है, भक्ति भेष है, खाल हिरन, चाल भेड़िया कार सर है, न्यूज़ टर्र टर्र है कुआँ खाई भाई भाई नगरी अंधेर, उल्लू सीधा घड़े चिकने, तूती नक्कार, डूबते तिनके, ढाक के तीन, तीन तेरह कोरा काम न टस न मस बेईमान मेहमान मान न मान, छूरी मुँह में, राम बगल, मौत बिगुल, धान बाईस पसेरी! माथा ठनका?

देशद्रोही कहीं के!

हेलो  . . .  माईक टेस्टिग . . . हेलो चेक चेक चेक हेलो हेलो चेकिंग देशद्रोही चेक चेक   देश गहरे संकट में है,  चारों तरफ़ से खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, खबर आयी है कि देश में देशद्रोही बड़ गये हैं,  कोई भी शक के दायरे से बाहर नहीं है,  आप मासूम नहीं सिर्फ़ इसलिये  कि आपकी कोई राय नहीं‌ है! अगर आपको देश से प्यार है,  तो मान कर चलिये हर कोई गद्दार है,  सरकार ने एक पत्रा फ़ॉर्मूला निकाला है,  बोलो, "भारत माँ की . . ." अगर नहीं बोल पाए तो आप देशद्रोही!  और अब तो देशभक्त होना भी आसान है,  एक झंड़ा और एक डंड़ा,  हाथ में रखिये,  झंड़ा उँचा रहे तुम्हारा, फ़िर जी चाहे उसको मारा, वंदे-मातरम का जोर नारा,  और माँ-बहन की गाली का सहारा,  देशभक्ति के लिये इतना तो वाज़िब है,  वैसे भी वेदों में कहा है,  जैसे को तैसा, खून का बदला खून से, भरम करो, करम की चिंता मत करो, और साथ ही, कुरान में,  क्षमा कीजिये, पुराण में लिखा है,  हिंसा परमो धर्मा,  उठा त्रिशूल मत शरमा!   ...

दौर-ए-सियासत!

सरकार दीवार बन गयी है, व्यवस्था ज़ंजीर बनी है, जमूहरियत में कैसी ये, तानाशाह तस्वीर बनी है? गुलामी के दौर हैं, गुलामों की सियासत है, किसके मथ्थे जड़ें,  अज़ीब ये हालात हैं   ज़महूरियत तानाशाह बन गयी है, फ़ासिवाद की पनाह बन गयी है! डर सारे यकीन बन गये हैं, सच जिद्द बन गयी है ,सियासत की, ज़ुल्म है, जो बिन पूछे बगावत की! हर एक कत्ल जन्म देता है नफ़रत को,   ये कौन सी फ़सल की तैयारी है, कौन सी नस्ल की! रोज़ होते हैं, हर और हर हाल, गुनाह नहीं है तहज़ीब का सवाल! दुनिया गयी भाड़ में, तरक्की की आढ में, छाया काट रहे हैं, सब धूप के जुगाड़ में! सियासत साज़िश बन गयी है, फ़िरकापरस्ती नवाज़िश, इंकलाब की सिफ़ारिश है, खामोशी अब मुहलिक(Fatal) है!