अपने ही घर से निकाले गए कहता है अब तक पाले गए जैसा था सांचा ढाले गए हम कहाँ वक्त के हवाले गए झूट के जाल में जाले गए हर सच पर अपने सवाले गए अपने हाथों के निवाले गए उनके हाथों में प्याले गए कैसे ये आँखों को जाले गए सारे उसूलों को लाले गए रस्ता दिखे यूँ उजाले किये उसने दरवाजों को ताले किये [कई कई साल पहले, लोगों के छोटे दिल और सिकुड़े हुए दिमाग से प्रभावित होकर रचित]
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।