सुबह एक सच, एक ख्याल, एक सवाल, एक पहल, एक झलक, कोई मलाल, एक उफ़क, एक शफक, एक मिसाल, एक चलन, कोई मिलन, ये है हाल! दोपहर एक सच, कुछ अलसाया, कुछ झुलसाया, वक़्त कुछ रुका सा, कुछ चुका सा, गुजरे हवा सा, खामोश साथ, साथ हाथ, उँगलियों से बात, गुज़री ख़ुशी, उम्मीदी हंसी, मन में बसी! शाम एक सच, एक उमंग, कुछ पसंद, एक प्यास, एक अंदाज़, अंदर एक आवाज़, हंसी शिकायत, मासूम शरारत, झूठी बगावत, सफ़र ज़ारी, रास्ते सवारी, कैसी तैयारी? रात एक सच, एक पड़ाव, एक साहिल, तज़ुर्बे उस्ताद, राय ज़ज्बात, अपनी बात, इंतज़ार, कुछ शुरू, कुछ ख़त्म, तय हालात, चंचल सवालात, सुकूँ है?
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।