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हाल समंदर

सुबह एक सच, एक ख्याल, एक सवाल, एक पहल, एक झलक, कोई मलाल, एक उफ़क, एक शफक, एक मिसाल, एक चलन, कोई मिलन, ये है हाल! दोपहर एक सच, कुछ अलसाया, कुछ झुलसाया, वक़्त कुछ रुका सा, कुछ चुका सा, गुजरे हवा सा, खामोश साथ, साथ हाथ, उँगलियों से बात, गुज़री ख़ुशी, उम्मीदी हंसी, मन में बसी! शाम एक सच, एक उमंग, कुछ पसंद, एक प्यास, एक अंदाज़, अंदर एक आवाज़, हंसी शिकायत, मासूम शरारत, झूठी बगावत, सफ़र ज़ारी, रास्ते सवारी, कैसी तैयारी? रात एक सच, एक पड़ाव, एक साहिल, तज़ुर्बे उस्ताद, राय ज़ज्बात, अपनी बात, इंतज़ार, कुछ शुरू, कुछ ख़त्म, तय हालात, चंचल सवालात, सुकूँ है?

आज इकट्ठा - उसका कच्चा चिट्ठा

सच कहें तो सब माया है और माया कहें तो सब सच! चलिए झोली खाली ही सही सवाल सफ़र में बड़े काम आएंगे! शाम को रुकने को कहिये दिन रात से बचना है कहिये! चलिए कुछ नया करते हैं, कहीं उम्मीद हताश न हो! रास्ते ख़त्म नहीं होते इरादों को ज़रा टटोलिये बच्चे बेबस हैं जिस समाज में क्यों कोई सर उठा जीता है? हर लम्हा तारीख़ होता है, सच ये है, इतिहास गवाह नहीं!

दिन रात

रात बैठी हे सिऱहाने पर, तुली है आखॊं में आने पर पर जहन मश्कुर है, कैसे बैठे जमाने के पैमाने में सुबह पैरॊं तले सिकुडी पड़ी है, ये घडियों की गुलामी बड़ी है अपनी कौन सी अड़ी है, गुजर जाये जो जल्दी पड़ी है! शाम ऐसे इतरा रही है, जैसे गुजरना ही नहीं है, दिन गया तो रात सही, कुछ करना ही नहीं है. धुंध छाई है, आज रौशनी ही परछाई है, ये कैसी सुबह है, सूरज ने ली अंगडाई है सुबह कि ठंड से जल गया सूरज, मन ठान के फिर चल गया सूरज, ओड़ती चादरॊं ने अहं को आवाज़ दी, चल गयी दुनिया, जल गया सूरज रात के पहलु में बैठे दिन कि बात करते हैं, ठिठुरती दीवारों में ख्यालॊं कि राख करते हैं, ठहरी अंगडाईयॊं को कहाँ कुछ खबर है, यूँ ही हम अक्सर बात करते हैं ! एक दिन की तीन करवट, हर मुश्किल नहीं पर्वत कुछ हलचल है दिल की, कुछ जहन ने की हरकत