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ढाई आखर दर्द के!

सुनने वाले बहुत हैं पर किसको कान करें?  ग़रीब हमारे दर्द हैं, कैसे यूँ बरबाद करें?  घर पहुंच जायँगे सोच चलते हैं,  कोई नहीं तो मौत से मिलते हैं!!  दर्द कहाँ हुआ,  आह कहाँ निकली!  सुना कहाँ किस ने,  क्या वजह निकली?  सुनते हैं दर्द अगर तो बहरे कान कीजिए,  कोसों चलते मजलूम आप अंजान कीजिए! रोटियां यतीम हो गयीं भूख के दौर में, दर्द गुमशुदा हैं सारे, तालियों के शोर में!   मौसम बदला है और वक्त ठहरा हुआ है, भूखा है दर्द और बहुत गहरा हुआ है! हर एक कदम दर्द से मुलाकात है, जाने समझें उन्हें कहां ऐसे हालात हैं? सुना है घर बैठे भी आप को दर्द हुआ, बहुत देर टी वी पर हमारा चर्चा हुआ!!

तालाबंद अक्लमंद!!

मीलों थके पाँव अवाम चला है, बेशर्म भारत का नया नाम चला है! छोड़ दिया अपने हाल पर मरने, घर बैठ सुनते हैं सब काम चला है! शर्मसारः कितने आ गए मदद करने, बस किसी तरह से ये काम चला है! मर गए सड़कों पर कितने लोग, समझे? यूँ बीमारी से बचने का काम चला है! बदतरी का सलूक, दर दर भटकते से बस एक माफ़ी से उनका काम चला है! हुकम चला, लाठी ओ फरमान चला है इज़्ज़त से कहां कोई काम चला है? बिठा दिया बीच सड़क छिड़कने को दवा, और पाँच सितारा किसी का इंतज़ाम चला है? राम के कारनामे और किशन के प्रपंच, एकलव्य का अब भी काम तमाम चला है! कर दिया एलान घर बैठने का अचानक बेघर तभी से तले आसमान चला है! घर बैठे ताली मारते बड़े बेशर्म हैं आप, क़यामत इस मुल्क का अंजाम चला है!!