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संदेश

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मुसाफ़िर, मेहमान, मेज़बान

मुसाफ़िर भी हैं,  मेहमान भी, और हम ही मेज़बान भी! समंदर को देखिए, दो लम्हे साथ, नज़र आएगा बहुत, समझ जाएगी बात!! एक एक बूंद की मेजबानी, अनगिनत जीवन को रवानी,  हवा ओ पानी, कहाँ कोई शिकवा, शिकायत? जब मर्ज़ी, आईए समा जाईए! लहरों के संग संग सफ़र, मंज़िल से बेखबर, चलने पर नज़र,  कहाँ कोई घर,  साथ बहुत कुछ, ओ सब हमसफ़र, वही नज़रिया, वही असर! साहिल के मेहरबान, हर लहर संदेश,  दो पल के मेहमान, सब चल रहा है, या बदल रहा है! हर घड़ी, पंछी को  पूछिए,  या सीप को! रेत- रेत ये विज्ञान! मुसाफ़िर,  मेहमान, मेज़बान अलग अलग हैं? या सच्चाई के अनेक नाम?

पास समंदर!

 पास समंदर  और दूर तक, साथ भी ओ अपने आप भी, मिले भी ओ अंजान भी, पहचान हुई, बस नाम की, किनारे ज़रा तर लिए, चुल्लू भर लम्हे लिए, आए ओ गुज़र लिए, ठहरना क्या है? क्यों है? सफ़र भी घर है, रास्ते कभी, किसी को रोकते नहीं!! चलिए, बह लीजिए!

गुनगुन गुण!

आप जितने हैं काफ़ी है, मर्ज को कहिए के उनको माफी है, आप को कम करने की कोशिश, नासमझी है, जाने दीजिए, ये समझना आसान नहीं , गुनगुन, गाने से कुछ कम नहीं,  असल में, गाने की दम है, कितनों की आंखें नम हैं, आपके गुनगुन करते मिज़ाज़ का ये दम है, ये दौर सच भी है और भरम भी, गुज़र जाएगा, फिर किसी दिन बैठ, जी भर गाएँगे, हम इंतज़ार में हैं, आप कब आएंगे? तब तक सब से गुजारिश है, रोज़ ज़रा सा, एक लम्हा बचा, क्या हम सब गुनगुनाएंगे

वक़्त का करतब!

 सब साथ है, तजुर्बों से कहां ज़ुदा जज़्बात हैं, गहराई अच्छी है, गर  याद रहे जमीन, वो भी उतनी ही सच्ची है, समंदर, पेड़, पानी, रोशनी सूरज अलग अलग हैं, पर साथ आकर सार्थक! मुकम्मल!  सोचिए आप, क्या हैं, इंसान, प्राणी, कुदरत, या फक्त वक्त का करतब?

बंजारियत!

आज सुबह की दौड़, बेजोड़, नयी शक्ल हर मोड़, और दौड़ ज़िन्दगी, कोई फुर्रर्रर कोई खिरामां खिरामां, सोचने का वक्त नहीं, किसी को, और कोई मगन है ख्यालों में, कोई सेहत के लिए भागता है, और कोई नेमत को, और काफ़ी अपनी कीमत को, और समंदर दूर से, बारीख़ी से, कुछ नहीं कह रहा, अगर आप सुन पाएँ, तो समझेंगे, सच कुछ नहीं है, बस आपकीं राय है!

छंद समंदर

साहिल किनारे, समंदर के धारे, सुबह के नज़ारे, रोशन ज़हाँ रे! उम्मीदों के इरादों को कैसे इशारे, यकीनों को सारे नज़ारे सहारे! लहरों के रेतों पर बहते विचारे, लकीरी फकीरों के छूटे सहारे! हर लहर को मिले अलग किनारे, दूजे को देख क्यों हम आप बेचारे ? दूर यूँ उफ़क से समन्दर मिलारे, सपनों को अपने कुछ ऐसे पुकारें! किनारों को समेटे समंदर ज़हाँ रे, किनारों को लगे वो उनके सहारे 

जिंदगी समंदर

सुबह समंदर की, कुछ बाहर से कुछ अंदर की, शांत किसी बवंडर की, सब कुछ है, और कितना कुछ नहीं, ये सच भी है, और है भी सही, कोई है और है भी नहीं, सामने है वो साथ है क्या, माक़ूल ज़ज्बात हैं क्या, खोये की सोचें, या पाए को सींचें, लम्हा हसीं है, पर कैसे एक उम्र खींचें, हाँ है अभी, उतना अपना, जितना आप छोड़ दें, हाथ बड़ाएं तो क्या तय है, वो पल मुँह मोड़ दे, जो है बस वही, आगे कुछ नहीं, ज़िन्दगी समंदर है, लम्हे सारे बंदर, पकड़ने गए तो हम क्या रहे!?

रोशन समंदर!

तमाम अँधेरे, तिनका तिनका रोशन कोने, उम्मीदों को तकिया, इरादों को बिछोने, बस यही है सब कुछ, और जो बाकी है वो आज़ाद मर्ज़ी, फ्री विल, कोशिश और कशिश, हमसफ़र बनते हैं, कभी कोशिश रास्ता, कभी कशिश साहिल, बेबसी ज़ाहिल, सब नज़र है, कहाँ, किसको क्या, असर है, ज़द्दोज़हद जिगर है, और ज़िरह भी, हालात से, खारिज़, आप जी सकते हैं, शर्तों पर, अपनी, जी भर के!

पल पल समंदर

कहाँ से उठी ओ कहाँ जाएगी, ये सुबह, फैलती सिमटती ये जगह, मिलती बिछड़ती कोई वजह भाग रही है, या जाग रही है, नज़र, समा रही है या समेटे हुए, रेत, मिटती है या लिपटती है, लहर, अकेले है या साथ के जश्न की, पहचान, तमाम है, और हर पल तमाम भी, सच यकीं भी है ये और गुमाँ भी, ज़िन्दगी, है? इस पल, और कल?

समय समंदर!

साथ समंदर साथ साथ एकांत साथ दुनिया सारी, जमीं समंदर आसमाँ सूरज साथ सब पर नहीं कोई किसी पर सवार, एक दूसरे को सब, साथ, फिर भी अकेले पहचान से मुक्त, साथ, कभी लहर समंदर, कभी समंदर लहर, कभी चट्टान, मजबूत सीना तान, अगले पल भाव-विहोर समंदर में लीन विहीन, उजागर भीगे, डूबे, निहित, खामोश, खिलखिलाते, सच, हाथ आते, फिसलते, अपनी शर्तों पर मिलते, ओ पिघलते सब यहीं हैं, आकाश और अवकाश आपके हाथ आने को तैयार, गर आप रुकें, बस उतनी देर, की समय समंदर हो, क्या आप को फुर्सत है?

पानी समंदर!

हर वज़ह पानी है, हर जगह, कितने मानी हैं, रोक रहा है रस्तों को, ओ कहीं सफर की रवानी है, कभी हवा है, कभी मौसम, रंग भी नहीं, कोई, ढंग भी नहीं, शिकायत भी है, ओ जश्न भी, कभी सवाल है, कहीं मलाल है, कहीं हिमालय है, कभी आपका गाल है, किसी का तीर, किसी को ढाल है, कहीं गंगा नाला, हलक सूखा निवाला घाट घाट का, कभी चुल्लू काफी, कभी पानी पानी आपकी हक़ीकत, अपनी ही कहानी, नज़र आ रहा है क्या, और किसकी है निशानी!

बहना-ठहरना

नदियां अगर साहिल को तलाशें तो क्या कभी बह पायेंगी और समंदर बन पायेंगी? स्थिरता, ठहराव ये सब बस मरुस्थल की परिभाषा है जो प्यासा रहना भूल गया पृथ्वी के एक टुकड़े का अर्थहीन सन्यास सब से अलग रहना यानि खुद को भ्रम में रखना सब में रहकर जो अलग हो तो कुछ बात बने  लालसाओं से दूर जाना अलग लालसाओं को ठुकराना अलग नदी से सीखो, उसे अगर  किनारे पर पहुँचने का लालच आ जाये तो तालाब बन जाये, संमदर कभी नहीं रुको नहीं, नदी की चाल पहचानो बहो नहीं_ _ _ बहना सीखो  स्थिरता!  रुकने में नहीं, ठहरने में नहीं बहाव के रुख को पहचानने में है स्वयं एक धारा बनने में है इस विचार को उस विचार से मिलने दो धाराओं के मेल को नदी बनने दो रुको नहीं बहो आज बनती है नदी, तो कल संमदर बनने दो !