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घुम्मकडियाँ!

इतिहास का इरादा क्या था? यूँ खड़े होकर, सरचढ़ बोलते, अपनी कहानी कहता है या मुँह चिढ़ा रहा है हमको? तुम ने कौन सा तीर मार लिया? अदना बन कर खड़े हो? हमारे साथ सेल्फ़ी लेते, लोग तुम्हें शायद लाइक करें?

बोध गया?

किसी की बोधगया और, किसी का बोध गया ,  क्यों‌ हैं‌ इंसान युँ मज़हबी ,  सालों का शोध गया , बुद्ध होगा मन जो आपका क्रोध गया , पर कहाँ कोई प्रभू समझता है , आदमी को बस प्रभुत्व ही जमता है , ' भगवान के नाम दे दे ' बोला तो भिखारी हो ', भगवान के नाम लेने वाले शिकारी क्यों नहीं ? खुदा का नाम , पुजारियों का बकरा है ,   बकरे को तो फ़िर भी खुली हवा मिलती है , और उसकी साँसे , चारदिवारी के अंदर धुएँ में पलती है , कौन समझेगा जहाँ बस मान्यता चलती है ? बस हाथ लग जाये तो बात बन जाये , दिल छुने की रीत गयी , मुक्त होने का बोध गया , सही रस्ता क्या दिखलायेंगे , पंड़ित - ओ - मौलवी , पादरी - ओ - रब्बी ये सब मलिकेमज़हब , जो सफ़र था आज़ाद होने का , बेड़ियों में ड़ालके , बन बैठे भक्तों के सरपरस्त , युँ तो रस्ते में पड़ा कोई भी मज़बूर आपको इंसान बना देता है , बशर्ते आप अपनी अकीदत का सट्टा न खेले हों , यूँही सत्ता के गलियारे में पैसे के जोर को चढावा नहीं‌ कहते , पुँजीवाद है , नम्बर 1 ही की बस इज़्जत है , जाहिर है , जह...