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सुबह!

उस मोड़ पर सुबह थी,  उस छोर पर सुबह थी, किसी रात की सुबह थी, कुछ बात है सुबह थी, घनघोर बादल के साथ, या उन्हें छोड़ कर सुबह थी? बावजह थी या बेवजह, सबके साथ ये सुबह थी.. आप कहां हैं, कहां आपकी सुबह थी? जाग रही थी साथ,  या दूर भागती सुबह थी? उस मोड़ पर हम थे, हाथ आयी सुबह थी, मिला रही थी कांधे, एक रास्ता सुबह थी, दिला रही थी यकीन, सहर से शाम सुबह थी, रखी थी पीठ पर हाथ, बड़ी इफरात सुबह थी!

मूरख हम–तुम!

कुछ ऐसी सुबह थी,  बेवजह थी बस होने के लिए न कोई डर, न फिकर, निकल पड़े बादल, कोहरा कब्जा करने! मर्द कहीं के! सदियों के अनुभव क्यों अकल नहीं बनते? जो विरासत में मिली वो नकल क्यों बनते? सुबह ढकी हुई है, सूरज सफेद है, फिर भी कोई कमी नहीं उनको, अपने रास्ते चल रहे हैं, जाने और आने में फर्क कहां है, वही जगह है, सब आपकी नजर कहां है? सब कुछ शांत, निश्चल, पाक – साफ़ जब तक हम काम नहीं बनते, एक दूसरे के लिए सामान नहीं बनते, घटते–बढ़ते, कम –ज्यादा! पेड़, पौधे, रास्ते ओस, जाले, सब बेवजह हैं, उनको उनका होना  मुकम्मल है! ये बस इंसान है मुरख जिसको आज– कल है!

देख - ए लुक!

इंसान देख बहुत सारा मकान देख, जंगल बन गए दुकान देख, सीढियां कहाँ तक ले जाएगी? बना और, और थोड़ी, और देख, जंगल घरों के देख, हर तरह के,  हर रंग में ढंग में बेढंग में, कोई छोटे, कोई बड़े कुछ शोर करते  आंखों में, देख देख, कुछ चुपचाप, विनम्र, कुछ ताड़ की तरह, कुछ बौने सबके सामने, उम्मीद देख, अरमान देख, अना ओ अभिमान देख, शान देख, जीजान लगा दी, जीवन की कमाई देख? देख क्यों? किसलिए? इस सब की जरूरत देख, जरूरत की व्यथा देख, देख, सोच अन्यथा देख, छूटा भरोसा देख, झूठा दिलासा देख, दिल बहलाने को , ग़ालिब ये घर देख! देख इंसान बस, इंसानियत मत देख! डर देख,  अगर देख, मगर देख, बाजार का कहर देख, बिकने को तैयार, बेचने को तैयार, कौन है ख़रीददार देख? बादल देख, बारिश देख, कुदरत की गुजारिश देख, क़ायनात की नवाज़िश, देख सकता है तो देख, शहर बना कर,  बढ़े बड़े घर बना,  कहाँ पहुंच रहे हैं देख? इतनी तरक्की की है, चाँद वाली, मार्स वाली, गति देख, गत देख? जहां जा रहे है उस कल की सूरत देख? अभी भी वही लड़ाई है, अभी भी जीतना है? वही पुराना डर, कोई न बैठे हमारे सर? देख देख देख, मान सके तो मान मूरख, अपने को कमजोर...