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मन के मौसम!

  मिल कर मन के मौसम बना रहे हैं, बादल ले कर आसमां आ रहे हैं, रंगों को कुदरत से छलका रहे हैं, ब्रशस्ट्रोक हवाओं के लहरा रहे हैं, कैनवास पल–पल बदल आ रहे हैं, ज़मीन पैरों तले पिघला रहे हैं, खड़े हैं जहां, वहीं बहे जा रहे हैं, मिल कर मन के मौसम बना रहे हैं, और वहीं हैं हम जहां जा रहे हैं! पहुंचे थे पहले पर अभी आ रहे हैं मूर्ख हैं जो वक्त से नापने जा रहे हैं, खर्च वही है सब जो कमा रहे हैं, दुनिया कहेगी के गंवा रहे हैं, और जागे हैं जब से जो मुस्करा रहे हैं!

सबका विकास, अकल का अवकाश!

सब बडा है,  सभ्यता, तरक्की, घमंड  और बड़बोलापन,  इंसान आज  घुट्ने टेके खडा है! चाँद तक पहुँच है,  दिमाग की समझ है,  सूरज की बिजली,  जमीन से तेल,  तेज़ रफ़्तार सब,  और अब? हर तरफ़ जंग है,  सोच इतनी तंग है,  किसी को पीछे छोड देना,  कामयाबी है!  नज़र नहीं आती,  चारों तरफ़ बरबादी है! आईने  दिखा देंगे सच,  आप नकाब तो हटाईए,  आप पूरे हैं,  और क्या चाहिए? सुनिए, खुद को, गौर से,  दूर हो,  दुनिया के शोर से,  आप किसी की राय नहीं हैं,  उदासी को निराश न करो,  अकेलापन, अधूरा मन,  सुन,  आपको दोषी नहीं ठहराता!

दिया तले जिया जले!

अंधेरे को रोशनी से छुपाने का हमराह किया है, चकाचौंध ने हमेशा ही सबको गुमराह किया है अंधेरे छुपाने को रोशनी बुलाए हैं, मोम हो रही सारी विधाएं हैं! अंधेरों को छुपाने रोशनी की साज़िश है, आँख बंद कर बैठिए, बड़ी नवाज़िश है!! अंधेरों को छुपाने के लिए रोशनी बुलाई है, ज़रा डॉक्टरों से पूछ लेते जो हजार कमी आई हैं? जला जला के मोम को दिए सबको बहकाए, दिए तले अंधेरा है मूरख काहे तू ये भुलाए! स्याह इरादे हैं और रोशनी के वादे हैं, रोशनी सामने कर सच से सब भागे हैं! सवाल नहीं हैं तो बेमतलब आप जागे हैं!  हाथ धरे बैठे थे अभी आंख खुल आई है, निकम्मेपन से सरकार के ये नौबत आई है!! अंदर के अंधकार को छुपाते रहिए, झूठी फिक्र को बस जलाते रहिए! लालटेन अंधेरे से सवाल करती है, आंख बंद कर हामी नहीं भरती! रोशनी वो जो रास्ता दिखाए, वो नहीं जो आंखों पर्दा कर जाए! रोशनी से अंधेरों‌ को छुपाएंगे,   बाज़ीगर वो आप जमूरा कहलाएंगे!  हर चीज़ तमाशा है, हर बात तमाशा, बहुत आशा है सबकी , वाह वाह तमाशा!! कहते सबके साथ हैं, धरे हा...

सवाल करो_न!!

(कुछ तो सोच लें‌ साथिओं?) खोखली नीयत ढोंग रचेगी, तमाशबीन ताली बजाएंगे!! खो गई है सोचने की कला, भेड़ बन कर भीड़ जाएंगे! (सवाल जरुरी हैं तरक्की के लिए) भिड़ रहे हैं किसी भी सवाल से, जल्दी ही वो भगवान कहलाएंगे!! उनने किया है तो सोच के बहुत, हम काहे अपनी अक्ल लगाएंगे? (बस हां में हां, कुछ सोचा कहां?) श्री राम बोल कर घर जलाएंगे, घर बैठे बैठे थाली चमकाएंगे!! देशभक्ति है घर बैठ जाएंगे, दिहाड़ी वाले आज क्या खाएंगे? (बिना सोचे, बिना समझे निर्णय) काल करे सो आज कर, आज! आज भीड़, कल कर्फ्यू लगाएंगे? सामाजिक दूरी तो हो गई, सुनिए? समझ से दूरी कैसे मिटाएंगे? ( ठेके पर मजदूर, लाखों बेघर और झूठ) जिनका कोई नहीं उनको राम है, भूखे पेट भगवान को प्यारे हो जाएंगे!! थाली पीटने से खत्म वाइरस इस विज्ञान से नई सदी जाएंगे? (बस बड़ी और खोखली बातें) मदारी शातिर हैं इस मुल्क के,  डमरू भी अब जमूरे बजाएंगे!! न काम को जा सकें ने धाम को! युँ हालात से हमको निपटाएंगे? ..

क़ाबिल सनम

ख़ुद से इंकार तो नहीं है, फिर भी, ये कब कहा कि हमको हम चाहिए? कोई दावत नहीं है दुनिया के गम को, ओ ये भी नहीं कहते के कम चाहिए! इंसानियत तमाशा नहीं है बाज़ार का, क्यों गुजारिश के आंखे नम चाहिए? इरादे आसमान पहुंच जाते हैं, तय बात! मुग़ालता है के बाजुओं में दम चाहिए! भगवान के नाम पर तमाम काम हैं, इंसान को ज़िम्मेदारी ज़रा कम चाहिए! कोई अलग है तो वो उन्हें नामंज़ूर है, सरपरस्तों को मुल्क नहीं हरम चाहिए! ताक़त से अपनी सब सच कर डालेंगे, इंसाफ़ नहीं फ़क्त उसका भरम चाहिए! क़ुबूल है कहने वालों की कीमत बड़ी, उनको कहाँ क़ाबिल सनम चाहिए? तमाम हैं हम फ़िर भी अकेले हैं, कारवाँ होने को दूरी कम चाहिए! उम्मीद जिंदा भी है और होश भी, कोई कह दे बस के हम चाहिए!

हकीकत की माया!

वो इंसान ही क्या जो इंसान न हो? वो भगवान ही क्या जिसका नाम लेते जुबां से लहुँ टपके? वो मज़हब ही क्या जो इंसानो के बीच फरक कर दे? वो इबादत कैसी जो किसी का रास्ता रोके? वो अक़ीदत क्या जो डर की जमीं से उपजी है? वो बंदगी क्या जो आँखे न खोल दे? वो शहादत क्या जो सिर्फ किसी का फरमान है? वो कुर्बानी क्या जो किसी के लिए की जाए? वो वकालत कैसी, जो ख़ुद ही फैसला कर ले? वो तक़रीर क्या जो तय रस्ते चले? वो तहरीर क्या जिससे आसमाँ न हिले? वो तालीम क्या जो इंक़लाब न सिखाये? वो उस्ताद क्या जो सवाली न बनाये? वो आज़ादी क्या जिसकी कोई जात हो? वो तहज़ीब क्या जिसमें लड़की श्राप हो? वो रौशनी क्या जो अंधेरो को घर न दे? वो हिम्मत क्या जो महज़ आप की राय है? वो ममता क्या जो मजहबी गाय है, बच्ची को ब्याहे है? वो मौका क्या जो कीमत वसूले? …… फिर भी सुना है, सब है, इंसान, भगवान्, मज़हब, इबादत, क्या मंशा और कब की आदत! अक़ीदत और बंदगी, तमाम मज़हबी गंदगी! शहादत ओ कुर्बानी, ज़ाती पसंद कहानी! वक़ालत, तहरीर, तक़रीर, झूठ के बाज़ार, खरीदोफरीद! तालीम और उस्ताद, आबाद बर्बाद! आज़ाद...

आज इकट्ठा - उसका कच्चा चिट्ठा

सच कहें तो सब माया है और माया कहें तो सब सच! चलिए झोली खाली ही सही सवाल सफ़र में बड़े काम आएंगे! शाम को रुकने को कहिये दिन रात से बचना है कहिये! चलिए कुछ नया करते हैं, कहीं उम्मीद हताश न हो! रास्ते ख़त्म नहीं होते इरादों को ज़रा टटोलिये बच्चे बेबस हैं जिस समाज में क्यों कोई सर उठा जीता है? हर लम्हा तारीख़ होता है, सच ये है, इतिहास गवाह नहीं!

जिंदगी ज़हर?

ज़िंदगी सबसे बड़ा ज़हर है, जो भी जिया उसके मरने की खबर है, रेबीज़ है, कुत्ते कि काट से भी ज्यादा घातक, सुना है, जिंदगी एक बार ड़स ले, तो उसका असर, सौ-सौ साल बाद भी नज़र आता है, बचता कोई नहीं, जिंदगी से सबका पत्ता कट जाता है, यानी इंसान दुनिया का सबसे मूरख जीव है, बेइंतहा कोशिश जिंदगी बढाने की, नशे की आदत ऐसी कि बस, 'जीना है, जीना है' की रट है, हम से तो मच्छर, चींटी अच्छे, जानते हैं चार दिन है या और कम,  फ़िर भी बेखौफ़ इतने लगे हैं, अपना आज़ संवारने में, आज भी नहीं - - - अब, इस लम्हे को बना रहे हैं सच के आज़ाद, और पेड़, पौधे जो एक जगह खड़े-खड़े बड़े हो गये, न आगे आने की रेस में दौड़े, न उम्मीद की जो नाउम्मीद छोड़े, न पलायन की कही कुछ और बेहतर है, जंहा थे वहीं के हो गये, ताड़, झुरमुट, बरगद, बबूल, फ़ूल, पाईन, वाईन(बेल) इसलिये नहीं कि इनके बाजु कोई बल गये बस जरूरत थी सो ढल गये, कुछ नहीं तो घांस हो कर चरा गये, दिल बाग-बाग हो गया, पालक मैथी का साग हो गया, अपने छोटेपन का बेचारा नहीं बने चारा बन गये, दूध बन कर...

आज़ादी किस से?

खुद से छुपने को आईने पे टिकते हैं , अपने ही हाथों बड़े सस्ते बिकते हैं ! सफ़ाई देने को तमाम बातें कहते हैं , अपनी ही गंदगियों से मूँ फ़ेर रहते हैं ! बढा - चढा के बातों से शान करते हैं , वतन परस्त सच्चाई बदनाम करते हैं , मुख़्तलिफ़ राय है नाइतिफ़ाक करते हैं , क्यों शिकन है जो यूँ आज़ाद करते हैं एक ही इबारत है सब बच्चे बेचारे पड़ते हैं , फ़िर क्यों आज़ादी के इतने झंड़े गड़ते है आज़ादी के गुलाम सारे एक चाल करते है , सच साफ़ न हो जाये कम सवाल करते हैं ! जख्म नासूर हो गये है माँ के दामन तले देशप्रेम सब क्यों आँखों पर पर्दे करते हैं!  बेगैरत अपने ही मज़हब के अमीर सारे , देख दुसरे को क्यों मुँह में लार करते हैं ? मुख़्तलिफ़ - different ; नाइतिफ़ाक - Disagree; इबारत -writing style

फ़रेबी मुश्किल!

टूटे दिल और फ़रेबी मुश्किल कहाँ ले जायेंगे कुछ सच अब आपके थोड़े करीब आयेंगे ! बहुत गुमाँ था आपको उनकी मोहब्बत का अब आपके यकीन आपको आज़मायेंगे ! प्यार , कौन कहता है कि आप छोड़ दें , दूर से देखिये वो अब भी मुस्करायेंगे खुल गयी पोल मोहब्बत की राज़ रखिये , अंदर की बात क्यों चेहरा देवदास रखिये ! दूर के ढोल बड़े सुहाने होते हैं , क्यों पास जा कर दीवाने होते हैं , ड़ंके की चोट पर ज़ोर से ऐलान करते हैं , क्यों मोहब्बत का बाज़ारू सामान करते हैं सारा दोष उनका और सब तोहमतें उन पर कमज़ोर यूँ अपनी मुश्किल आसान करते हैं , 

खाक मोहब्बत!

मुहब्बत है या मिल्कियत , साथ है या सौगात , कोई सामान है खरीदा जो रहे आपके हाथ ? रहे आपके हाथ बस , बात उतनी ही कीजे , लगे सुनाने चार , जो मुरख को मौका दीजे ! जो मूरख बोले बात वो गांठ के लीजे , कल के मुर्दे गाड़, आज ठाट कर लीजे बड़े ठाट से घुमे , झुमे चार चौबारे , थे वारे न्यारे सच, जो अब कड़वे सारे कड़वे पड़ गये सच तो जरा चाट के लीज़े , है काम की चीज़ बड़ी , जरा बाँट कि लीजे ! लगे बाँटने चोट ये इश्क में कैसी फ़ितरत , प्यार कहे थे कभी , अभी ये कैसी नफ़रत नफ़रत नहीं इलाज़ जख्म को मलहम कीजे , लंबा है सफ़र वज़न ज़रा हल्का कर लीजे ,