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जय जय श्री शंकर !

यमुना का किनारा, मजबूर बेचारा जहाँ न पहुँचे कवि, इतनी बदबूदार छवि, वहाँ पहुँचे शंकर, काँटा लगे न कंकर, इसलिये जेसीबी चलवा दिये धरा को धमका के समतल बना दिये प्याला धरम का पिया, थोड़ा सरकार को दिया, थोड़ा जज ने भी चखा,    अल्लाह के नाम पे दे दे बाबा जो दे उसका भला, वरना किसान जैसे फ़ंदे को गला, मैं गिर जाउंगा, उठ न पाउंगा जो तूने मुझे थाम न लिया, ओ सौ सेना का गरेबाँ पकड़ा और उन्हीं की पीठ पे चल दिया, एक के दो दो के चार मुझको क्यों लगते हैं, ऐसा ही होता है जब दो श्री मिलते हैं, उपर राम नीचे संघी घमासान, हो सौ रबड़ी, जलेबी घी की,   ओ संघी भैया, आओ आओ, ओ मेरी उमा, बड़े जतना से गयी भैंस पानी में रे कंधे पे, सर रख के, तुम मुझको खोने दो, अपनी है, सरकारें, जो चाहे होने दो, मीड़िया वालों को मुस्करा के कह दो तुम कितने नादान, कितने कच्चे, तुम्हारे कान, हो सौ खबरी,   दो दिन पहले, एनजीटी का, माल-या खुदा, कहाँ से लायेंगे, छोड़ो जी, ये सब तो, सरकार से ही दिलवाएंगे कुछ भी हो लेकिन मज़ा आ गया नरिंदर अरविंदर सब अपने जाल, राम के नाम शंकर का कमाल! अब देखिये जिंदगी की कला का ...

रामलछन

राम नाम के काम सब, राम नाम के लच्छन, इज्ज़त से सब खेल रहे राम जपन के बंदर, राम जपन के बंदर सारे बने दुषासन, लाल किले पर चढ़के ये देते भाषण, भाषण के बड़े बीर लगाबें झूठे नारे, संविधान पर बैठ जोर से राम जपारे, जप के ज़ोर से राम राम मस्ज़िद दिए गिराये, नफ़रत के सौदागर अब देस अपना चलायें, देस अपना चलायें राम के सारे जादे, बेच दिए पूरी देसवासी अक्ल के आधे, अक्ल के आधे राम को सारे अंधे, मज़हब के चल रहे तमाम धंधे अंधे, धंधे-अंधे चला रहे माया  का जादू, चला रहे सत्ता अंबानी-अडानी के बाबू अंबडानी के बाबू सब देस को सेब बनायें, बेचेंगे ये मुलक कोई जो जेब गरमाए, गरम जेब के लालच में देसभगत सब आये लालच की भक्ती में सारे राम-लुभाये! रामलुभाये आसा, देव, और श्री के संकर, फूल चढ़ाये बहुत कोई अब फैंको कंकर!