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इंसानी प्रकृति!

आपसी रिश्ते सिर्फ़ इंसान से रिश्तों से खून के जातीय मकान से खरीदे सामान से पसंदीदा पकवान से पालतू जानवर , या धर्म की मानकर और धरती से ? जिसके उपर सब खडे हैं ! क्या हम सब चिकने घडे हैं ? कहां वो शुरुवात हुई , जो आखिर हमारी मात हुई ? एक अलग ईंसानी जात हुई बुद्धि , विवेक , संवेदना की बात हुई ? और फ़िर लगे जंगल कटने , जानवर जंगली बन गए , संरक्षित , जो बचे हैं , हमारी दयामाया से , क्या है हमारी प्रकृति ? हरियाली से हमारा क्या रिश्ता है ? या वो सिर्फ़ एक चीज़ है , बाज़ार की दुनिया वाली , इस्केवर फ़ीट के दाम वाली , या छुट्टिंओं वाली , हमारे ज़िंदगी के हसीन पलों की , याद दिलाने वाली , तस्वीरों की पॄष्ठभूमि ? धरती को माता कहते हैं , इसे तो नाता कहते हैं ! इंसानी दुनिया को पालने - पोसने वाली , फ़िर क्यों ये हाल है ? क्यों प्रकृति बेहाल है ? भूकंप , सुनामी , सायक्लोन , ज्वालामुखी , जंगल जंगल आग कहीं ये जज़्बात तो नहीं ?

मोड़ के जोड़ तोड़!

उम्मीद को आसमान नहीं लगता, मुसाफिर को सामान नहीं हालत को क्या इल्ज़ाम दें, गर जज़्बे को जान नहीं   अभी लौटे हैं और चलने की सोचते हैं मेरे सफर ही मेरा रास्ता रोकते हैं अब रुके हैं तो हम मुसाफिर कुछ कम नहीं होते    साहिल को छु कर आते धारे नम नहीं होते  हर चलना सफर हो तो क्या?  रास्ता न रुके तो कहाँ ? मुसाफिर कोई रास्ता नहीं बना, चलते चलते तुम्हारे कदमों ने इसे बुना,  मंजिलों को क्या तलाशते हो,  वहीँ पहुंचोगे जो तुम्हारे क़दमों ने चुना गुजरना कोई अंत नहीं, सफर कोई अनंत नहीं,  काफिले हर मोड़ मिलेंगे, अपने आँसू काबुल हों  सब उड़ते हुए पंछी आज़ाद नहीं होते आसमान को इरादे लगते हैं युहीं कोई सफर मुकम्मल नहीं होता सफर में मुश्किलों के अँधेरे लगते हैं

सुबह हुयी क्या?

आपको पता नहीं!...पर आज भी सुबह हुई थी  भोर अभी भरी नहीं थी  और तारे अब भी सजग  पेड़ अभी भी सकुचे सिमटे  पंछी भी चुप यहाँ तक की रात को रास्ता किये डाल-डाल, पात-पात, उल्लू भी, एक अजनबी सी ख़ामोशी  समंदर के गर्जन को चीरती हुई वहीँ, कई फूलों की महक, सड़ते पत्तों और गीली जमीं के साथ  डेरा डाली हवा में चारों तरफ पहुँचती हुई, सारी प्रकृति भोर के इंतज़ार में थी ! आने वाला दिन  उम्मीद, सयमं और अजीब सा ठहराव  शायद इस डर में कि अपनी हलचल में कहीं आने वाला कल न खो जाये  न जाने कितने ऐसे दिन शहरों के शोर में गुम हैं. (जिददू कृष्णमूर्ति की सुबह की चहल-कदमी और उस से जुड़े विचारों से अनुरचित)