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सर्दी और सुबह!

फिर आ गयी सिरहाने से, एक सुबह जाग उठी है! आज सुबह बस आई सी है, कुछ ज्यादा अलसाई सी है! छुट्टी मांगी नहीं मिली, सूरज की भी नहीं चली! गुस्से से लाल पीला है, जागा अभी अकेला है! पुरे दिन पर सुबह छलकी पड़ी है, धुप तेज पर सर्दी को हल्की पड़ी है! सर्द रातों को सबक सिखाने, बद्तमीज सुबह जरुरी है?  सर्दी में सुरज की बदतमीजी बड़ी हसीन है, बेशर्म हो कर ज़रा धुप को छू लेने दीजे!! सुबह शाम है और दिन रात भी, सब कुदरत है और करामात भी!

सुबह के सच!

आज सुबह की यूँ शुरुवात हुई अकेले थे दोनों खूब बात हुई! यूँ ही सुबह से मुलाक़ात हुई, मुस्करा दिए दोनों ये सौगात हुई! और भी थे इस सुबह के मुसाफिर, अकेले कहाँ कायनात साथ हुई! वो भी अपने पुरे जोश में निकाला खामोश थे दोनों बहुत बात हुई, यूँ आज सुबह की हालात हुई,, एक पल में अजनबी वो रात हुई!! हर एक लम्हे की कई दास्ताँ थीं, बदलते रंगों से ज़िन्दगी आबाद हुई!

बादल अनलिमटेड़!

बादल , पागल , चले ज़मीन आसमान एक करने खाई का फ़रक लगे भरने , बेअक्ल या बेलगाम , सुरज की रोशनी को मुँह चिढाते , इतराते , इठलाते , भरमाते , नरमाते , पल - पल उम्मीदों को अजमाते , खड़े रहो कंचनजंघा अहम के साथ इस भरम में कि उंचाई विजय है , और बस एक छोटा सा टुकड़ा , जिसे न अहम है न वहम खोते - खोते होता हुआ , या फ़िर होते - होते खोता हुआ , आपकी झूठी सच्चाईयों को गह लेता है , दो पल के लिये ही सही , मोक्ष - एक पल का ही एहसास है , क्या आपके पास खालिस विश्वास है ?

अपने गिरेबान!

कहां रवि और कहां कवि एक अपनी ही आग में जलता है  , उसे क्या खबर कि  , उसी से जग चलता है ? दुसरा कहने से ड़रता है  , सीधी बात , घूमा - फ़िरा के  , चिंगारी पानी में लपेट के  , प्रवाह के वेग को शब्दॊं में समेट के  , और उम्मीद ये , उसकी आग दुसरों को जलायेगी  , चिंगारी एक दिन आग बनायेगी  ,    और वो अपने अहं की चट्टान चढ खुद की पीठ थपथपा कामयाबी अपने सर लेगा  ``````````````````````````````` और एक तरफ़ सुरज़ जो कल के , दू धदांत वाले गुमनाम बादल को भी गुज़रने देते हैं , चाहे वो उन्का मुंह काला कर के गुजरा हो शर्म से बादल ही पिघल जाते हैं  , और सावन के दिन आते हैं  , उन दिनों की ही  , कितने कवि रोटी खाते हैं और उनमें सुर बिठा  , कितने गले इतराते हैं और उस पर ये दावा  , जहां न पहुंचे रवि , वहां पहुंचे कवि ? मुर्खता या अंहकार  , कवि अंधेरों में अपनी रोटी सेंकते हैं  , चाहे वो खुद के हों , या दुनिया के और रवि अंधेरों को आज़ाद छोड़ता है अपने स...