सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

perspective लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देखते हैं, क्या?

जिसे देखते हैं,  वो भी देखता है, नज़र मिल रही है,  या बस एक इत्तफाक है, ये वो लम्हा है, जो खास है. और उसके पहले जो पल था, वो भी खास ही हुआ? नहीं तो ये मिलना इत्तफाक न हुआ? और नज़र में आ गए, उसके बाद?  वो भी खास ही हुआ न? नहीं तो वो लम्हा क्या बकवास हुआ? जिसके बाद कुछ न खास हुआ? नज़रिए की बात है,  सच एक लम्हा भी अगर जिंदगी का खास है, तो ताउम्र जिंदगी खास है देख सकें तो देखें, सच तमाम है इर्द–गिर्द, जो आप चुनेंगे, वो ही आपका खास है!!

पनपने के सच–बुढ़ापा

बचपन पनपता है, जवानी मचलती है बुढ़ापा ठहरता है, बुढ़ापा बुफे है उम्र का, इसमें सब शामिल है, बचपन की पुकार जवानी का जोश, गर आपको हो होश! समंदर है ये, लहरें जिसकी जवानी है, बूंद बूंद  बचपन की रवानी! बुढ़ापा, थकान नहीं है, रस्तों के मोड़ की पहचान है, ये आपके सोच का सच नहीं सोच, दुनिया की जागीर है, सही–गलत की जंजीर, अगर यूं बूढ़े हुए तो आप उम्र का शिकार हैं! बुढ़ापा साहिल है, तटस्थ लहरों को हर हाल भिगोने वाला, जोश जवानी का लिए जो आई उसे यकीन दिलाने वाला हां, तुमने डुबा दिया बुढ़ापा; वो जो न तौले, न मोले, न बोले, मंजूर करे, हर उम्र, हर हाल "हां, तुम चलते रहो" बचपन है तो बचे रहो, जवानी है तो बहो! बुढ़ापा भी मंज़िल नहीं है, एक उम्र का अंजाम, हां, जाम जरूर है, अगर खुद को मान लें, मान दें, सामान नहीं है जो उठाना है, बस एक और मोड़ है, हंसते हंसाते गुजर जाना है!

पनपने के सच – जवानी

बचपन पनपता है, जवानी मचलती है बुढ़ापा ठहरता है, जवानी में दिल बहुत मचलता है, मर्जी के रास्ते चलता है, अक्सर पिघलता है, अपने बस में है, पर बस कहां चलता है? जवानी जोश है, एक पुकार है, जिंदाबाद! जवानी तूफान है, कहां कोई थाम है, मुश्किल आसान है! बेलगाम है, एक ललक है, और लालच भी, उस हर ताकत का, जो लगाम लिए खड़ा है, क्योंकि उसे तूफान चाहिए, काम अपना आसान चाहिए! दुनिया को तूफान चाहिए, पर अपने लिए आसान चाहिए, इसलिए बना दिया है, उम्र बढ़ने को एक जंग, हमेशा चलने वाली लड़ाई, पहला नंबर आओ, पीछे रह गए तो और जोर लगाओ, आगे निकल गए तो, किसी की शाबाशी के गुलाम बन जाओ! लगे हैं सब नंबर वन होने में, ज्यादा हैं आप किसी के कम होने में? जवानी, खर्च होने की चीज़ नहीं तो गौर करिए, कोई आपको कमा तो नहीं रहा? नंबर – एक दो तीन गिनती बना तो नहीं रहा? बेलगाम रहिए, बेनाम सही, नाम होगा तो बिक जायेंगे, कामयाबी कांटा है मचली बाजार का, जवानी मचलती है, कैसे खुद को बचाएंगे?

बॉडी लैंग्वेज

अकेले हैं,  कुछ ऐसे ही अपने मेले हैं, फिर भी भीड़ कम नहीं,  ख्यालों के रेले पेले हैं जाने कहां कहां धकेले हैं नज़रों की धक्का मुक्की है, बिन बोले कहीं ये रुक्की हैं कदमों की अपनी मर्जी है, अपनी चाहत के दर्जी हैं हाथ खड़े हो जाते हैं, थक जाते हैं थम जाते हैं और कान लड़े ही जाते हैं, हमको नहीं सुनना ये दुनिया, अब मुंह को कौन संभाले है, भटके है जहां निवाले हैं! नाक न नीची हो जाए, बड़े तहज़ीबी हवाले हैं! एडी, घुटने, कंधे, कोहनी अपनी जुबान ही बोले हैं भीड़ बहुत और कोलाहल, पहचाने सब बोले हैं, साथ हैं सब, मजबूरी के, इस साथ के सब अकेले हैं, कहने को सब मेले हैं!

किसके आसमाँ?

बहुरूपी सच!

क्या गुनिए, क्या गुनगुनाइए!

गोली मारो कहबे, मूरख सोच के नेता चुनिए सहनशील संस्कृति बीरों की कथनी सुनिए! कथनी के सब बीर, कही अनसुनी करिए, बातों के तीर बचने, चलीं अब बहरा बनिए! बातों के सब तीर, मलहम का कर बनिए फिसली हुई जबान जालिम कहिये-सुनिए कहिये-सुनिए सबकी, पर यूँ ना गुनिये काँटों का, का दोस् ,जीवन आप जो बुनिए? बुनिए जीवन ऐसा जिसमें जगह हो सारी, मैं, मेरा, मुझसे की न लगने पाए बीमारी! लगे बीमारी ऐसी तो पूरी उमर सताए, अपनी ही तस्वीर सजाने तू वक्त गवाए! वक्त गवाएं सारा के बने गोरा-सुंदर क्रीम बेचते मदारी बने कौन है बंदर? बंदर बने बली के, हैं छुरी में धार लगाते, मुंह में इनके राम, पीठ पर छुरी चलाते! छुरी पीठ पर जैसे बनी सरकारी नीति, मिट्टी पैरों के नीचे के बनी है रेती! रेत बन गए सपने सब हाथों से छूटे? टूट गए हैं कितने, कितने खुद से झूठे! खुद से झूठ बोल रहे उनको क्या समझाएं, कहाँ आगयी दुनिया और कहाँ अब जाए?

किसका हाथ है?

किसका हाथ है, किसके साथ है, क्या हो रहा है, ये नहीं, ये की क्या जज़्बात है? आप उम्मीद हैं या सिर्फ हालात हैं? हक़ीकत आग है,  दूर है कहीं, किसी को पास है! वो जुदा है क्या,  जो आपका आकाश है? अनछुआ, अछूता, जो हो रहा है हर ओर, आपको अवकाश है? झाँक रहे हैं सच हर कोने से, क्या नज़र है, तय है आपके होने से! नज़रिया क्या है? वो जो चमकता है या जो स्याह है? वज़ह है क्या ओ क्या सिवाय है? सच के क्या मायने हैं, सच के क्या आईने हैं? जो दिख रहा है वो, या जो टिक गया है वो, मानने को मजबूर हैं, या चलता है क्योंकि दूर हैं?

अपनी क़यामत

एक सुबह का सवाल है, क्यों दुविधा है मलाल है? हालात क्या, क्या हाल है? क्यों बिगड़ी वक्त की चाल है? इस सुबह कोई एक बग़ावत हो, चाहे वो कोई एक आदत हो, जो होता आया वो देख लिया, क्यों बिन मर्ज़ी कोई क़यामत हो? क्या देखें क्या छोड़ दें, बातों को क्या मोड़ दें? करें कोई नयी कोशिश या हाल पे ऐसे छोड़ दें? सुबह की वही शिकायत है, क्यों वही पुरानी आदत है? क्यों अलग हो रहें है सब, इंसानियत से क्या बग़ावत है? परंपरा, संस्कृति, तहज़ीब, तर्बियत नीयत बिगड़ी है या तबीयत, इतनी नफ़रत, इतनी वहशत, क्यों दकियानूसी हुई शराफ़त? सुबह का दोपहर, शाम, रात से, रिश्ता है किस जज़्बात से? एक ही हैं, या एक धर्म-जात से? कैसे बचेंगे नफ़रत के हालात से?

कायकू?

चलता है वही, जो चलता है, किसका क्या जाता है? बादल सच हुए, बरस बरस के, तरसे तर हो गए! सिसकते पहाड़, मिट्टी पत्थर सरकते, आएं किसके रास्ते? कितना ऊपर पहुंचे, तरक्की तमाम, नीचे गिरें धड़ाम! सभ्यता में जानवर, पालतू, आवारा, जंगल,जंगली नागवारा!! हाइवे लंबे लंबे, दूरियाँ कम करते, गांव के बीच से! रोडोडोन्द्रों (बुरांश) फूल, पैसा वसूल, जो जैसा जहां है! छुप रहे हैं सब? बादल, आसमाँ, पेड़! नज़र या नज़रिया? ठंडा गरम सूरज नरम तुम हम! लंबी चढ़ाई, घुटनों से लड़ाई, खुद पीठ थपथपाई!