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ये पतंग!

ये पतंग है, पर सिर्फ पतंग नहीं, ये तबीयत है, नेक नीयत है, मसला-ए-तरबियत है! आसमाँ से मिलने को चलती है, 'नाही कोयू से बैर' बेफिक्र मचलती है! न कोई जल्दी है, न बेचैनी, उड़ना ही आसमान है, काम कितना आसान है! न डर किसी का,  न मंज़िल का दवाब, जैसे सच कोई ख्वाब! कल्पना की उड़ान है,  इसी में तो जान है, न कटना, न काटना आनंद मिलना, बांटना! (श्रीलंका, कोलंबो में पतंग उड़ाते है, काटते नहीं! एक पतंग 100 मीटर लंबी देखी, यूँ भी संभव है अगर काटने, हड़पने, झटकने, चिल्लाने से बाज़ आएं! )

सच सुबह!

सब खुश हैं, अपनी अपनी जगह पर अपनी अपनी जगह से, फ़िलहाल, इस पल में और फिर सब बदल जायेगा और फिर भी सब खुश हैं, अपनी अपनी जगह पर अपनी अपनी जगह से सूरज बादल आसमान जमीं सारा निसर्ग, सब साथ हैं, अपनी अपनी जगह भी, और उस के साथ बदलते न अटके हैं , न भटके हैं न कोई चिन्ता है, न कोई इंसिक्युरिटी, न खींच-तान, न अपनी जगह का दबदबा, पानी पानी, हवा हवा सब चल रहा है, सब बदल रहा है, बदलने की कोशिश नहीं, क्योंकि बदलना ही ज़िन्दगी है, कोशिश तब जब डर हो, अगर मगर हो, खम्बों में घर हो, और ये गुमाँ कि कुछ मेरा है, "मैं" मालिक, कितनी इंसानों जैसी बात है, आप ही कहिए, इंसान होना कौन बड़ी बात है!??

बोध गया?

किसी की बोधगया और, किसी का बोध गया ,  क्यों‌ हैं‌ इंसान युँ मज़हबी ,  सालों का शोध गया , बुद्ध होगा मन जो आपका क्रोध गया , पर कहाँ कोई प्रभू समझता है , आदमी को बस प्रभुत्व ही जमता है , ' भगवान के नाम दे दे ' बोला तो भिखारी हो ', भगवान के नाम लेने वाले शिकारी क्यों नहीं ? खुदा का नाम , पुजारियों का बकरा है ,   बकरे को तो फ़िर भी खुली हवा मिलती है , और उसकी साँसे , चारदिवारी के अंदर धुएँ में पलती है , कौन समझेगा जहाँ बस मान्यता चलती है ? बस हाथ लग जाये तो बात बन जाये , दिल छुने की रीत गयी , मुक्त होने का बोध गया , सही रस्ता क्या दिखलायेंगे , पंड़ित - ओ - मौलवी , पादरी - ओ - रब्बी ये सब मलिकेमज़हब , जो सफ़र था आज़ाद होने का , बेड़ियों में ड़ालके , बन बैठे भक्तों के सरपरस्त , युँ तो रस्ते में पड़ा कोई भी मज़बूर आपको इंसान बना देता है , बशर्ते आप अपनी अकीदत का सट्टा न खेले हों , यूँही सत्ता के गलियारे में पैसे के जोर को चढावा नहीं‌ कहते , पुँजीवाद है , नम्बर 1 ही की बस इज़्जत है , जाहिर है , जह...

किसकी चाल चले?

रौशनी की कमी नहीं फिर उम्मीद क्यों लडखडाती है, मील के पत्थर मक़ाम नहीं होते, बाज़ार में क्यों ढूंढते हो? सचाई, भरोसा, ईमान, दुकान नहीं होते किस बोझ से झुके हो, दिल के अरमान सामान नहीं होते! आसमान खुद जमीन पर आता है, सदियों से सावन कहलाता है जीते हैं, इसलिए भाग रहे हैं या भागने के लिये जीते हैं? चूहे रेस नहीं लगाते जिंदगी जीते हैं. कोई चाल चलिए अपने अंजाम पर पहुंचेगे खरगोश होने के लिये कछुओं की जरुरत नहीं, फुर्सत की सांस अहंकार नहीं होती! सरल सा प्रश्न है ! आप जिंदगी भाग रहे हैं? ....या जाग रहे हैं?????