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मेरे प्रियजनों!

 

फ़ादर स्टेन स्वामी

कत्ल हो गया और कातिल कोई नहीं, इस मुल्क का हांसिल कोई नहीं! मोहब्बत की बात करता था जो, नफ़रत को नागवार वो गया! खुश होंगे वज़ीर-ए-कत्ल मुल्क के, हस्पताल में गुठली का दाम हो गया! सोच संघी ताकत सरकारी, इंसाफ पे भारी, इस दौर को असली महामारी हो गया! बस एक गुनाह था के रोशनी था वो,  अंधेरे के सौदगरों को खार हो गया!   नाम स्टेन स्वामी, उम्र 84 साल, क्या मलाल, एक सवाल, एक  सवाल,  और  बस सवाल!

दो बच्चे साफ़!

दो बच्चे, बुरे या अच्छे? झूठे या सच्चे? आपके या अनाप के? जात के या "छी! दूर हट" क्या उनका गुनाह हुआ? क्यों हिंदू थे? या "वो वाले हिंदू?" वही यार! समंझ जाओ! जिनका कोई कुछ नहीं कर सकता! हां हां! वही अछु...  नहीं नहीं दलित!  हा हा हा हा हा हा !!! इनका कुछ नहीं हो सकता,  ये सुधरेंगे!! (भारत माता की जय सच पर स्वच्छ की विजय) हां!! तो क्या हुआ, दो से कौनसे कम हो जाएंगे, नाली के कीड़े! अरे, उफ ये बदबू,  पोट्टी कर दी क्या  ये तुम्हारा लाड़ला, करा कर नहीं निकलीं थीं! उफ! जरा गाड़ी रोको (चीईईईईईईईईई!) चलो बदलो इसका डाइपर, (2 मिनिट) हो गया, चलो अरे! ये डाइपर फेंको यहाँ, नहीं है डस्टबिन तो क्या करें! फेंको इधर ही सड़क पर, ड्राइवर चलो! ज़रा ब्लोअर चलाओ, बदबू भर गई! हां ! मैं क्या कह रहा था?

मन की घात!

सवाल पूछना, जेल है, नए संविधान के खेल हैं!! अधिकारों की बात गुनाह है, संस्कारी गुंडों को पनाह है!! वक़ालत अपराधियों की करिए! मासूमों के कान रामनाम धरिए!! मोदी, अंबानी, अडानी, सत्य वाणी! आदिवासी, दलित इनका खून पानी!! पिछड़ा, कमज़ोर है तो घुटनों के बल हो, जाति-वर्ग के बीच में कैसे दल-बदल हो!! अम्बेडकर, मार्क्स, फुले सब हराम हैं? सच्चा वही जिनके नाम राम है..? रामदेव, रामपाल, आसाराम और तमाम! सनातन आतंकी तो उसका पुण्य काम? गीता में लिखा है बस वही ज्ञान है? बाकी किताबों का घर क्या काम है? कमज़ोर की आवाज़ शोर है, हाथ उठाए वो तो हिंसा है!  सरकार की लाठी कानून है,  पूंजीवादी की बात तरक्की!

बेटी - बचाओ बचाओ!

वो सब राम के बंदे थे, मजबूर थे की नीयत के नंगे थे! परंपराओं के पक्के थे, कुछ अधेड़ थे कुछ उम्र के कच्चे थे, पर इरादों के अपने पक्के थे, दिल थोड़ा नाज़्ज़ुक था, बच्ची पर आ गया, पर फिर भी इरादों से नहीं डगमगाए, बच्ची को मुश्किल न हो, इसलिए दवा भी दिलाए, मारने के बाद भी उसके कपड़े धुलाए, और इस सब में भी पूजा पाठ, भक्ति की पराकाष्ठा कहिए, संतो की वाणी है, अच्छे-बुरे में एक समान, देवस्थान! जय श्री राम! नहीं पड़ेगा जो हनुमान चालीसा, उसका होगा काम तमाम! भारत माता की जय, वंदे मातरम, डर किसका है! (इस्तेमाल किए गए व्यंग चित्र भगवान का अपमान नहीं करते, न ही ऐसी मेरी कोई मंशा है, वो इस बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि भगवान के नाम का कैसा गलत इस्तेमाल हो रहा है)

मजबूर नफ़रत

अपनी जंग के सब मजबूर हैं, सच्चाई के कौन जी-हुज़ूर हैं? गुस्से में इतने के खुद से दूर हैं, कैसी मुल्कीयत के पाकिस्तान ज़रूर है? आवाज़ अलग है तो उसको जला देंगे, कौन इंसान जिसको खून जरूर है? नफ़रत के कितने सब मंज़ूर हैं, क्या कीजे के आदमखोर हुज़ूर हैं! सच छुप जाए यूँ के हम मग़रूर हैं, डरी हुई आवाम को छप्पन जरूर है! इंसान ही इंसान को काफ़ी पड़ेगा, कौन कहता है क़यामत जरूर है? लाज़िम है के खामोशी एक राय है, कुछ तो इशारा हो के नामंजूर है? दूध का रंग सुर्ख नज़र आता है, क्यों रगों में आज इतना सुरूर है? मूरख गिन रहे हैं अपने और उनके, आख़िरकार इंसान को इंसान जरूर है!