वो सब राम के बंदे थे, मजबूर थे की नीयत के नंगे थे! परंपराओं के पक्के थे, कुछ अधेड़ थे कुछ उम्र के कच्चे थे, पर इरादों के अपने पक्के थे, दिल थोड़ा नाज़्ज़ुक था, बच्ची पर आ गया, पर फिर भी इरादों से नहीं डगमगाए, बच्ची को मुश्किल न हो, इसलिए दवा भी दिलाए, मारने के बाद भी उसके कपड़े धुलाए, और इस सब में भी पूजा पाठ, भक्ति की पराकाष्ठा कहिए, संतो की वाणी है, अच्छे-बुरे में एक समान, देवस्थान! जय श्री राम! नहीं पड़ेगा जो हनुमान चालीसा, उसका होगा काम तमाम! भारत माता की जय, वंदे मातरम, डर किसका है! (इस्तेमाल किए गए व्यंग चित्र भगवान का अपमान नहीं करते, न ही ऐसी मेरी कोई मंशा है, वो इस बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि भगवान के नाम का कैसा गलत इस्तेमाल हो रहा है)