बच्चे क्यों अपने या पराये होते हैं? रोज़ रोज़ बच्चे गायब होते हैं, रोज़ कितने नाज़ायज़ होते हैं, फ़िर क्यों पैदा होते हैं, कौन सी जरूरतों के जायज़ होते हैं! क्यों होते हैं दिखाने कि चीज़? अपना ही जरूरत का घर, कपड़ा, सामान, और अपने खून का बच्चा काम आसान! बच्चे हैं अपने या अपने अहं का शिकार हैं, नमक-मिर्ची स्वाद अनुसार घर का अचार हैं! क्या आप बच्चों के सलाहकार हैं, दोस्त, या उनके भविष्य-विधाता? बापगिरी, माँगिरी, दादागिरी, टीचरगिरी,आदर्शगिरी, कब मिलेगी बच्चों को खुली हवा की साँस फ़िरी! क्या आपको मालूम है अब हॉस्पिटल में पंड़ित बैठते है और मुहुर्त के हिसाब से लोग ऑपरेशन कराते हैं कि सही समय बच्चा पैदा हो! मुहूर्त पर पैदा करते हैं, बच्चों का मैदा करते हैं, कैसे इनको बड़ाएंगे, नमकीन बना के खायेंगे! बच्चे भगवान का रुप? क्या इससे घटिया मज़ाक कोई हो सकता है? पैदा हुए तब भगवान का रूप, लड़्की हुए तो बददुआ खूब, मज़बुरी हुई तो बाल मज़दूर, किस बात का है सभ्य गुरूर! दुनिया का बेइंतहा बेशरमपन, और हमारा बचपन, पचपन बहाने आपके, और बलि एक मासूम सचपन! बचपन किस चिड़िया का ना...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।