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अक्तूबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देख - ए लुक!

इंसान देख बहुत सारा मकान देख, जंगल बन गए दुकान देख, सीढियां कहाँ तक ले जाएगी? बना और, और थोड़ी, और देख, जंगल घरों के देख, हर तरह के,  हर रंग में ढंग में बेढंग में, कोई छोटे, कोई बड़े कुछ शोर करते  आंखों में, देख देख, कुछ चुपचाप, विनम्र, कुछ ताड़ की तरह, कुछ बौने सबके सामने, उम्मीद देख, अरमान देख, अना ओ अभिमान देख, शान देख, जीजान लगा दी, जीवन की कमाई देख? देख क्यों? किसलिए? इस सब की जरूरत देख, जरूरत की व्यथा देख, देख, सोच अन्यथा देख, छूटा भरोसा देख, झूठा दिलासा देख, दिल बहलाने को , ग़ालिब ये घर देख! देख इंसान बस, इंसानियत मत देख! डर देख,  अगर देख, मगर देख, बाजार का कहर देख, बिकने को तैयार, बेचने को तैयार, कौन है ख़रीददार देख? बादल देख, बारिश देख, कुदरत की गुजारिश देख, क़ायनात की नवाज़िश, देख सकता है तो देख, शहर बना कर,  बढ़े बड़े घर बना,  कहाँ पहुंच रहे हैं देख? इतनी तरक्की की है, चाँद वाली, मार्स वाली, गति देख, गत देख? जहां जा रहे है उस कल की सूरत देख? अभी भी वही लड़ाई है, अभी भी जीतना है? वही पुराना डर, कोई न बैठे हमारे सर? देख देख देख, मान सके तो मान मूरख, अपने को कमजोर...

नफ़रत से प्यार!

चलो थोड़ी और नफ़रत करते हैं, खून में अपने ज़रा ज़हर भरते हैं, ज़िंदगी में सफल होने का ये प्रधान मंत्र है! शाह और मात के खेल में हिंसा शाषन तंत्र हैं! नफ़रत की गोदी में हिंसा पलती है, समय आने पर ज़हर उगलती है! नफ़रत काम आसान करती है, भीड़ को हिंदू मुसलमान करती है, जिसकी सरकार उसकी धौंस, लोकतंत्र बहुमत का खेल है, जो कम है वो फेल है! शाश्वत सत्य यही बात है, जो कम है वो उसका बुरा कर्म है, बुरे की हार है, यही हिंदुत्व व्यवहार है! चलो फिर दिल में नफ़रत जगाओ, हिंसा का अलख जगाओ, अगर अपनी नफ़रत पर तुम्हें शान है, तो यही सच्ची भक्ति की पहचान है! श्रेष्ठ कुल रीत सदा चली आई, नफ़रत ही ने जात चलाई, जो कम है वो अक्षम है! ढोर गंवार शुद्र पशु तन है! तिरस्कार इनका है जरूरी, बराबरी से रखो दूरी! भारत को हिंदू स्थान करो, धर्म नाम पर पाप करो, पापों का जो घड़ा भरे, धुल जाए सब गंग तरे! निर्भय हो तुम वीर बनो, नफ़रत के तुम तीर बनो! रीढ़ अपनी कर दो अर्पण, बुद्धि अपनी भेंट चढ़ाओ, मार किसी को अमर बन जाओ! रामराज में रम जाओ!