रास्तों से बातें,
या बातें करते रास्ते?
रास्ते-
कहां हो,
कहां जा रहे हो,
किसके वास्ते?
भाग क्यों रहे हो,
जरा आस्ते-आस्ते!
बदल रहे हो या
बस चल रहे हो?
भीड़ में अकेले और
अकेलेपन की भीड़?
क्यों मुड़ती जा रही है रीढ़?
मैं-
और तुम कहां चल रहे हो?
ढल रहे हो,
पिघल रहे हो,
खड़े खड़े,
या बैठे-बैठे,
या लेटे,
कहीं जाते नहीं दिखते,
फिर क्यों गुम हो रहे हो?
नीयत है या नियत?
कैसे भरोसा करें तुम्हारा,
न कोई ठौर है, न ठिकाना,
न कोई आना-जाना
रास्ते -
हम साथ है,
ठहरे को ठहराव,
चलते को सर आंखों लेते हैं,
एक साथ दोनों काम कर लेते हैं,
हम कदम नहीं गिनते,
न मुसाफ़िर चुनते,
हम हैं ही कहां?
हम चलने से बनते हैं,
जहां कोई नहीं चलता,
वहां रास्ता नहीं मिलता!
क्या अकेले होने से
कोई इंसान बनता है?
रास्ते -
हम साथ है,
ठहरे को ठहराव,
चलते को सर आंखों लेते हैं,
एक साथ दोनों काम कर लेते हैं,
हम कदम नहीं गिनते,
न मुसाफ़िर चुनते,
हम हैं ही कहां?
हम चलने से बनते हैं,
जहां कोई नहीं चलता,
वहां रास्ता नहीं मिलता!
क्या अकेले होने से
कोई इंसान बनता है?
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