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का कहें कबीर!

ऊसूल सुन के गरीब हैं,   वसूल सुन के फ़कीर,  अपने मतलब की बात सुनें तो फ़िर का कहें कबीर? जात-पात को नाप रहे, ऊँच-नीच को लकीर,  सदियों पहले बोले थे, अब फ़िर से सुनो कबीर  अपने अपने मज़हब की, चमका रहे तस्वीर, वापस आने की बात करें, तो कान धरें कबीर,  रस्म-रिवाज़ और रीत की बड़ी करी तहरीर, वही ढाक के तीन पात, कहे मूरख कौन कबीर रटत-रटत किताब को, बुद्धि के सब वीर, सबके कच्चे कान हैं, जाने कौन कबीर लंबी इमारत, लंबे रास्ते ये दुनिया की तस्वीर, एक-दुजे फ़ुर्सत कहाँ, जो समझा करें कबीर बात पते कि हजार-सौ कह गये संत कबीर, बंद दिमाग के दरवाज़े, सो रहे लकीर के फ़कीर!

बातों बातों में.....

कहीं कुछ रोकता है क्यों.... खुला दिलो-दिमाग हो तो दरवाज़े दीवार नहीं होते, आपस की बात है, वरना ये आसार नहीं होते  देखने और होने के बीच के फ़ांसले .... नज़र आँखों में नहीं यकीन में होती है,  एक हंसी से भी जिंदगी हसीन होती है! सब एक नाव में सवार हैं . . . आपको हमारे माथे की पेशानियां नहीं दिखती, जमीं रहने दो, वरना लब्जों में जान नहीं दिखती सफ़र आपके भी हैं और अपने भी.... गुजरते हुए लम्हे हैं गुमराह मत हो,  मुश्किलें मील का पत्थर हों, सफ़र न हों! तक्दीर फ़क्त एक रास्ता है,  मंज़िल नहीं होती, मुश्किल, मुसाफ़िर न हो, तो वो मुश्किल नहीं होती! मुसाफ़िर होना फ़कीरी काम है, सफ़र में यही बस एक नाम है!.... हमारा दुनिया में होना ही एक सफ़र होता है,  कौन सी राह से गुज़रेंगे, ये अपनी नज़र होता है! मुसाफ़िर रहना हो तो फ़कीरी अंदाज़ हों, कटोरा हम देंगे मुबारक आपकी आवाज़ हो! हाथ फ़ैला दिये तो कटोरा तैयार है,  दिखती सामने होगी, पर जहन में है, वो जो दीवार है, सच करवट बदलते हैं.... दुविधा भी सुविधा का दुसरा नाम है, वो बहकना क्या जो हाथों मे जाम है? मोड़...