किनारे, क्या इस पार, क्या उस पार, ज़िंदगी, साथ, रोज़ कोशिश बदलाव, कम और जरूरत अनगिनत कमी अकेले कमज़ोर क्या कितना कब सपने पूरे अधूरे टूटे उस पार थढ़, सर अलग धढ़ दर्द चीख़ अपने सपने टूटे क्या कहां जाने दो ट्रेन आने दो ज़िंदगी
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।