वक्त के धागे से, याद की सुइयों में दर्द को सीते हैं ! गुजरे हुए मौसम की, सुखी बरसातों को अश्कों से भिगोते हैं! यादों की पतझड़ के, टूटे हुए पत्तों से छुपते छिपाते हैं! जिस्मानी रातों की, रूहानी बातों के लम्हे जुटाते हैं! चुभ न जाए कहीं, बंद हुई पलकों में सपनों को सुलाते हैं! अधखुली क़िताबों में, गुम हुए शब्दों के मतलब तलाशते हैं! तन्हाई के शोर सुन, खामोशियों की भीड़ में, ख़ुद को गुनगुनाते हैं! तस्वीरें तमाम देख, अपनी पहचान को अजनबी बनाते हैं! अपने साथ देर से, इत्तला के फेर में, दूर सब से जाते हैं! यकीन सारे तय हैं, उसके ही सब भय हैं, ख़ुद की ही सब शय हैं!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।