सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

देश भगती!

अच्छे दिन आए क्या?
खुशहाली लाए क्या?
ज़मीर जगाए क्या?
क्या भारत एक है?
क्या हम सहनशील हैं?
क्या हम समृद्ध हैं?
क्या हम सुरक्षित हैं?
भीख़ मांगते बच्चे क्यों हैं?
खुदकशी किसानों के सच क्यों हैं?
धर्म के नाम के धंधे क्यों हैं?
जो कम है वो कमजोर क्यों है?
फैसलों में सिर्फ ताकत का जोर क्यों है?
कश्मीर में इतनी सेना क्यों है?
मंदिर के लिए मस्जिद तोड़ना क्यों है?
बलात्कार क्यों हैं?
गोरे रंग का भूत सवार क्यों है?
मर्दजात रंगदार क्यों है?
हर शहर में लाल बत्ती (रेड लाइट) गली क्यों है?
मर्द की परिभाषा पैरों के बीच खुजली क्यों है?
शिक्षा, स्वास्थ व्यापार क्यों है?
हर कोई बिकने को तैयार क्यों है?
झूठ इश्तेहार क्यों है?


कहाँ फ़ंसा दिये यार,
राय पूछते हो जैसे,
खाओगे क्या?
गाय?
पूछते हो!
कुछ सवालों के ज़वाब नहीं होते,
जो सामने है वो तस्वीर नहीं है,
शैतान कलाकारी
सोच कर पकाई खीर है,
माला पहनी ज़ंजीर है,
गलती से लोग गले में डालते हैं,
जात के जादूगर,
देश्भक्ति का जाल लिये
मासूमों को फ़ँसाने में लगे हैं,
आज की दौर के ज़लदाद हैं,
मुस्करा कर रस्सी लटकवाते हैं,
वैसे भी इनकी परंपराओं में,
खोपड़ियों का हार पहनाते हैं!
शिक्षा में सिर्फ सही जवाब मंजूर है,
सवाल पूछने वाले सिर्फ हुजूर हैं!



तालीम वही है ज़ो सवाल खड़े कर दे,
दिलो-दिमाग में गुंजे, बच्चों को बड़ा करदे!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी ...

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।