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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिम्मत के हथियार!

हिम्मत के हथियार चाहिए नफरत नहीं प्यार चाहिए अपने हाथों में हो अपनी कश्ती की पतवार , हिम्मत के हथिया र, हिम्मत के हथियार.... कौन कहे किस को बेगाना , मजहब किसने समझा जाना मंदिर मस्जिद की बातों में, नफरत से इंकार हिम्मत के हथियार, हिम्मत के हथियार.... कब तक हम बर्दाश्त करेंगे, मासूमों पर वार सहेंगे दिल में अपने प्यार जगा दे, अब ऐसी ललकार हिम्मत के हथियार, हिम्मत के हथियार.... अपने सबको ही प्यारे हैं , बीच में कौन से दीवारें हैं गुलशन हरसू फूल खिला दें, ऐसे कारोबार हिम्मत के हथियार, हिम्मत के हथियार.... हमको सबका साथ चाहिए, हर झगडे की मात चाहिए नेक इरादों के मौसम से, ये दुनिया आबाद हिम्मत के हथियार , हिम्मत के हथियार.... सबके दिल में आस चाहिए , उमींदों की प्यास चाहिये मौसम बदलेंगे जब बदलें, मौसम के आसार हिम्मत के हथियार, हिम्मत के हथियार.... हक की सारी बात चाहिए नहीं कोई खैरात चाहिए, चलिए बनें संविधान के ऐसे पहरेदार, हिम्मत के हथियार, हिम्मत के हथियार.... हमको खबर ए यार चाहिए दोस्ती भाईचार चाहिए रि...

मेरी बस्ती नई हस्ती!?

वतनपरस्ती जो है वो कौमी हस्ती भी है, मेरी पूजा तम्हारी अज़ान बनी है!! नफ़रत क़रीब आई तो मोहब्बत बन गई, अंजान खुद से जो अब पहचान बनी है! हक़ की बात अब जो जुबान बनी है अब मुल्क की तस्वीर जवान बनी है! आबाद हो गई हरसु आज़ादी की बात, भीड़ मेरी गली की अवाम बनी है! साज़िश थी पूरी डुबाने की इसको, चीख़ निकली ओ संविधान बनी है!! फ़न चमक उठे हुक़ूमत की तलवार पे, ज़िंदाबाद की बात जो इंकलाब बनी है!! दूर है कश्मीर, कन्याकुमारी से बहुत, इन दिनों ज़रा सी उम्मीद बनी है!

गुनहगारी कानून!!

मामूली है जो बो ही ख़ास भी है, आसमाँ में भी है आसपास भी है! हलक फूटे हैं हलाक के डर पर भी।    जो घुटन है वो आज तड़प भी है! हलाक - destruction,  slaughter फिक्र है जो वो बेफिकरी बनी है! सवाल है जो वो ही उम्मीद भी है!! सर फूटे हैं और सुर मिल रहे हैं! जहां दर्द है वहीं सुकून भी है!!  (हम देखेंगे, लाज़िम है के हम भी...) बांट दिया इतना के अब साथ खड़े हैं तरतीब में है जोश, वो ही जुनून में भी! ( तरतीब-in order) समझ है बहुत पर होशियार नहीं थे? वार करते हैं क्योंकि तैयार नहीं थे, वुजूद है जो वो ही बावुजूद भी है? जो कानून है वो ही गुनाह  भी है! बेड़ियाँ उनकी क्यों हमें मंजूर हैं? जो कन्याकुमारी वो ही कश्मीर भी है?!

एन आर सी नहीं!

एक कागज के टुकड़े जितनी आपकी औकात है, कौन हैं जो कह रहे हैं "वाह वाह! क्या बात है"? समझ नहीं आता आखिर क्यों धर्म जात है, फिर फिर वही सवाल क्या धर्म क्या जात है? सिर्फ़ इंसान होना काफ़ी नहीं है ऐसी बात पर कानून की लात है! ऊपर से ये दावा के हम मुल्क चलाएंगे, संविधान चलाना जिनको घूंसा-लात है? क्यों लाज़मी है जो न वाज़िब न मुनासिब है? सिर्फ इसलिए के किसी के मन की बात है? गरेबाँ तक उनके हाथ जबरन आते हैं, जिनके मुँह पर भारत माता की बात है? क्यों वो एक एक को चुन चुन के जांचेंगे, आस्तीन के सांप हैं जिनके ये जज़्बात हैं! हुक़ूमत की लाठी अपने सर भारी है, कश्मीर पर फिर क्यों अलग जज़्बात हैं??