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बॉडी लैंग्वेज

अकेले हैं,  कुछ ऐसे ही अपने मेले हैं, फिर भी भीड़ कम नहीं,  ख्यालों के रेले पेले हैं जाने कहां कहां धकेले हैं नज़रों की धक्का मुक्की है, बिन बोले कहीं ये रुक्की हैं कदमों की अपनी मर्जी है, अपनी चाहत के दर्जी हैं हाथ खड़े हो जाते हैं, थक जाते हैं थम जाते हैं और कान लड़े ही जाते हैं, हमको नहीं सुनना ये दुनिया, अब मुंह को कौन संभाले है, भटके है जहां निवाले हैं! नाक न नीची हो जाए, बड़े तहज़ीबी हवाले हैं! एडी, घुटने, कंधे, कोहनी अपनी जुबान ही बोले हैं भीड़ बहुत और कोलाहल, पहचाने सब बोले हैं, साथ हैं सब, मजबूरी के, इस साथ के सब अकेले हैं, कहने को सब मेले हैं!