सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ओ.....बामा ओ....बामा!

देश की लग गयी वाट, खा गए समझ के चाट,
बजाओ अब ये गाना,
ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना

हमरा चूल्हा नहीं जलता ज़रा अपना कचरा दे जाना,
ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना

झुठी हमारी सब शान, फिर भी करना है गुणगान,
गुमनाम हो जाए गरीबी ऐसा आधुनिक विज्ञान,
झांकी लंबी है देख जरा जाना
ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना

सब धर्मो का मान,आखिर सब राम की संतान,
मार-प्यार से बुलाते जॉन,ज़ानी घर-वापस आना
जो नहीं माने उसका मुज़फ्फरनगर ठिकाना
ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना

बदल किताबों को देते नए सच का ज्ञान
बड़ा प्राचीन है हमारा आधुनिक विज्ञान,
भूल गए बस थोडा हमको याद दिलाना
ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना

बड़ा जटिल हमारा गणतंत्र, गण गरीब अमीर तंत्र,
मजदूरी के लिए जरुरी गरीब, गरीब रह जाना
"थोड़ा खाओ थोड़ा फेंको" गाओ ये गाना
 
ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना

पूरा दिल्ली कर दिए सेफ, चोर बदल के आये भेष,
हमारे जवानो और आपके कुतों को मिलेगा खाना
बाकि भूखों को है भाड़ में जाना

ओ बामाँ ओ बामा, हमें छोड़ मत जाना


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।