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मर्द के दर्द!

कौन कहता मर्दों को दर्द नहीं होता,
हम बस बयाँ नहीं करते,
पैरों के बीच,
...वो . . . मतलब . . . यानि. . .
न न
दिल में छुपा रखते हैं,

खुद ही दारु-दवा करते हैं,
थोड़े अंधेरों को हवा करते हैं,
पर क्या करें ये खुजली कि बीमारी है,
आप तो समझते ही होंगे,
(मतलब देखेते ही होंगे)
क्या करें कंट्रोल ही नहीं होती,
और लातों के भूत, हाथों से नहीं मानते,
अब आप को समझना चाहिये न. . .
सामने क्यों आते हैं,

सदियों से यही होता आया है,
पेड़, पहाड़ और औरत,
इन पर चढ कर ही हम मर्द होते हैं,
ये मत समझिये हमें दर्द नहीं‌ होता,
अब हम तो मानते हैं,
हमसे कंट्रोल ही नहीं होता,

और फ़िर हम भेदभाव नहीं करते,
6 महीने की बच्ची, 60साल की बूढी,
स्वस्थ, सुंदर या अंधी-गुंगी,
अमीरी से ढकी या गरीबी से नंगी,
नोचते वक्त हम रंग नहीं देखते,
और देखना क्या है
ज़ाहिर है,
प्यार अंधा होता है, और
उसी का धंधा होता है,

बस सप्लाय कम है, ड़िमांड़ ज्यादा,
वैश्वियकरण की नज़र से देखिये
समस्या आसान है,
भूख है तो खाना चाहिये,
उपज़ बढाईये,
बलात्कार खत्म करने है तो,
सब महिलाओं को धंधे पर लगाइये,

वैसे भी बातों में तो हम सदियॊं से
अपनी माँ-बहन एक कर रहे हैं,
इसी बहाने, आजादी के साठ साल बाद,
हमारे समाज़ में समानता आयेगी,
फ़िर महिलाओं पर हमारी नज़र
प्रोफ़ेशनल(Professional)  होगी,
न कोई बेटी हॉनर किलिंग कि बली चढेगी,
बेटियाँ कमाउ पुतनी होंगी,
तो पेट में मरने से बचेंगी,
और फ़िर दंगों में भी,
राम के नाम,
सीता, द्रोपदी(Draupadi) होने से बचेंगी,
आप ही सोचिये, रामवाण है उपाय,
मर्द के दर्द सारे खर्च हो जायेंगे,
जेब में हाथ ड़ालेंगे, खुज़ालेंगे,
और किसी भी दरवाज़े घुसकर
अपनी अठ्ठन्नी भुज़ा लेंगे!

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