ज़िंदगी नाम है,
या काम?
संज्ञा, सर्वनाम?
क्रिया, विशेषण?
या ये सब तमाम?
क्रिया बिन क्या नाम?
नाम बिन कोई काम?
काम कोई विशेष हो
जो बन जाए सर्वनाम?
या सर्वनाम काम है?
जैसे उपनाम है,
जन्म दर जन्म,
आपको जकड़े हुए,
जात, धर्म विशेषण,
क्रिया एक शोषण?
कुरीति, कुपोषण?
और उन सबका क्या,
जो बेनाम हैं,
उनके लाखों काम हैं,
न उनकी कोई संज्ञा,
न कोई सर्वनाम है!
भाषा से ही,
भाषा में भी
उनका काम तमाम है!
रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है! अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!
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