ज़िंदगी नाम है,
या काम?
संज्ञा, सर्वनाम?
क्रिया, विशेषण?
या ये सब तमाम?
क्रिया बिन क्या नाम?
नाम बिन कोई काम?
काम कोई विशेष हो
जो बन जाए सर्वनाम?
या सर्वनाम काम है?
जैसे उपनाम है,
जन्म दर जन्म,
आपको जकड़े हुए,
जात, धर्म विशेषण,
क्रिया एक शोषण?
कुरीति, कुपोषण?
और उन सबका क्या,
जो बेनाम हैं,
उनके लाखों काम हैं,
न उनकी कोई संज्ञा,
न कोई सर्वनाम है!
भाषा से ही,
भाषा में भी
उनका काम तमाम है!
नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!
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