उन
सरहदों पर
जहाँ
सेना नहीं, पर
सभ्यता
की
कश्तियाँ
हैं, और
मांझी भी,
सब
के सब
तैयार,
तत्पर और
लाचार
अपनी
तस्वीरों के, तमाम
जंजीरों के
कुछ
जो नज़र ही नहीं आती
न
पाँव मुड़े, न
सर झुके
कि
बस आदत है
फ़रक
लाने कि
हिम्मत
ये भी है!
काश
आप को खबर होती
आप
जीत रहे हैं,
और
ये जंग है,
बिना
बात मुस्कराने से
सर
हाथ किसी बहाने से
बस
होने से,
कि
कोई अकेला नहीं है,
जो
है, वही
अपना है,
और
आप हैं,
वहाँ
और
फ़र्क पड़ता है!
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