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एक और अज्ञात!

अज्ञात है और मेरा मित्र भी,
एक कोशिश है एक चित्र भी
सामान्य है और विचित्र भी
सीमित है पर सीमा नहीं
जीवित हैं पर जीना नहीं
सब कुछ ठीक है,
और सब कुछ बदलना है
रास्ता बना नहीं फिर भी चलना है,
सपने हकीकत हैं,
जो बोले शब्द वो जीवित हैं,
अपनी ‘गति’ के समाचार,
और खबर बुरी नहीं है,
सच्चाई छुरी नहीं है,
क्योंकि होता वही है जो तय है,
और चाल आपकी, आपकी शय है,
मात नज़र की कमजोरी है,
उम्मीद कि न दिखे फिर भी डोरी है
वैसे भी आँख के सामने गर अँधेरा है,
तो हाथों को हवा कीजे,
यकीन की दवा कीजे ,
और मारिये एक छलांग,
जमीन से गिरे भी तो कहीं नहीं अटकते,
एक दो तीन,......
धड़ाम
देखा, न चींटी मरी, न आप ,
पर तबीयत हरी हो गयी!
चलिए अब नए सिरे से सोचें
बोलने वाले तो कुछ भी बोलेंगे!





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साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

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