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बिखरे गौहर!

बिखरे गौहर आराम थे फरमाते, 
हाथ लगे सुराग, हैं अब नज़र आते 

क्यों नापते हो रिश्तों कि लम्बाई
क़त्ल तराश होना है, फिर क्यों तलाश हीरे कि
तलब बेहतरीन है, तो क्या खाक इबादत पीरे कि

मेरे होने में ही इश्क-ए-अज़ीज़ है 
फिर क्यों आशुफ़्तगी है
कसर ढूँढ कर कहते हो
कि कोई कोताही खली है

हमारा साथ मुकम्मल है, क्यों ये बात कल है
जिन्दगी क्या सिर्फ लम्हों कि फसल है?

हमारे साथ कि बेहतर ये आसानी है
दुनिया गयी भाड़ में, आपकी
हम से सारी परेशानी है 



सोच लो
हर पल एक लम्हा हो जायेगा
गुजरा आँखों से मंजर हो जाएगा,
जी लो आज को हर घडी,
बीता, कौन जाने कब पिंजर हो जाएगा

होंसला साथ हो भी तो, बिना यकीं क्या होगा, 
नजर आसमान में सही  पैर जमीं पर होगा

देख लो  
बिखरे हुए रंग, तस्वीर फिर भी एक है
उम्मीद आसमानों कि, इरादे पर भी नेक हैं

नजरें चुरा कर नज़र आते हो ...
अमां! क्यों अपने हुस्न से कतराते हो
कातिल हो या खुद का शिकार, 
नजरें बयां कर रही हैं कई अल्फाज़.. 
ये अंदाज़ है तो अंजाम क्या होगा,
चढ़ गया सर तो मकाम क्या होगा



समझ लो 
शुन्य तजुर्बे शौक के जितने, मुकम्मल शौक होते हैं, 
बदलते हालत हों तो पैदा खौफ होते हैं.
रूह अजनबी होती है मिट्टी नहीं,
वक़्त कि जिद में सिमटी नहीं.
जिन्दगी कि लगाम में बंधे हम अनजान होते हैं,
रूह हो कर समझेंगे और भी काम होते हैं 

कुछ लम्हे, उम्मीद कई, कुछ साथी नसीब के,
जिन्दगी अब भी गुजर रही है करीब से

आप ही पास हैं, आप ही एहसास हैं,
आप ही प्यास हैं, आप ही नासाज़ हैं
आप ही राज़ हैं, आप ही हमराज़,
आप ही आवाज़ है, आप ही अंदाज़




आखिर क्यों? 
हर साल, उसी पल, उसी लम्हे, वही दोहराते हैं,
क्या मजाक है "नया है, नया है" गाते हैं!
पुरानी आदत हो गयी है, आदत ही इबादत हो गयी है
है कोई नया विचार, पुराना भी अच्छा होता है अचार?


आशुफ़्तगी- कष्ट; गौहर -मोती

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